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३५५. औरतें मर्द और मर्द औरतें!

पिछले सप्ताह विलायतसे कुछ तार आये हैं। उनसे उपर्युक्त सवाल उठता हैश। अंग्रेज औरतें तो मर्दोंका काम करती हैं; क्या हम मर्द होते हुए भी औरतें बन बैठेंगे? यह सवाल मजाकका नहीं, गम्भीर है। कैसे, सो हम देखें।

अंग्रेज औरतोंको मताधिकार नहीं है। उसके लिए वे आन्दोलन कर रही हैं। लोग उनका मजाक उड़ाते हैं, वे उसकी परवाह नहीं करतीं। कुछ दिन पहले आठ सौ औरतोंका जुलूस संसद भवनके पास पहुँचा। पुलिसने उसे रोका। इससे कुछ बहादुर औरतें जबरदस्ती संसद भवनमें घुसने के लिए बढ़ीं। ये औरतें मजदूर वर्गकी नहीं है। इनमें एक जनरल फ्रेंचकी बहन हैं। वे स्वयं ६० वर्ष से अधिक उम्रकी हैं। दूसरी कुमारी पेंकहर्स्ट हैं। वे विलायतके एक प्रसिद्ध धनिककी लड़की हैं। दोनों विदुषी हैं। आठ सौकी टोलीमें ऐसी बहुत-सी बहनें हैं। इस तरह जबरदस्ती घुसनेवाली औरतोंमें से जनरल फ्रेंचकी[१] बहन आदि प्रसिद्ध महिलाओंको पकड़ लिया गया। उनपर मुकदमा चलाया गया। मजिस्ट्रेटने उनपर एकसे दो पौंड तक जुर्माना किया और जुर्माना न दें तो जेलकी सजा दी गई। इस तरहकी सजा ४९ औरतोंको दी गई है। किन्तु उनमें से सब औरतें उनपर किये गये जुर्माने की रकम न देनेके बदले जेल गई हैं। उनमें जनरल फ्रेंचकी बूढ़ी बहन भी हैं। हम मानते हैं कि इन औरतोंका यह काम मर्दानगीका है।

अब हम अपना घर देखें। लॉर्ड सेल्बोर्न और सर रिचर्ड सॉलोमन कहते हैं कि एशियाई अध्यादेश पास किया जाना चाहिए। एक-दो महीनेमें, सम्भव है, पास हो भी जायेगा। यदि ऐसा हुआ तो क्या भारतीय जेल जायेंगे? हम मानते हैं कि झूठे अनुमतिपत्रोंके आधारपर प्रवेश करनेवाले व्यक्ति जब पकड़े जाते हैं तब जेलके डरके मारे रोने लगते हैं। किन्तु चोरी करते समय नहीं रोते। इसे हम नामर्दी मानते हैं। जब गलत तरीकेसे जुल्मके द्वारा लोगोंको चोर मानकर उनकी अँगुलियोंकी निशानी लेनेका हुक्म होगा तब लोग चुपचाप अँगुलियोंकी निशानियाँ देंगे या जेल जायेंगे? यदि वे अँगुलियोंके निशान देकर नाक कटायेंगे तो हम उन्हें दुहरा नामर्द मानेंगे। इसपरसे हम प्रश्न करते हैं कि भारतीय मर्द क्या औरत बन जायेंगे? या जैसे अंग्रेज औरतें बहादुरी दिखा रही हैं उनका अनुकरण करके जागेंगे, और ट्रान्सवालकी सरकार यदि जुल्म करना चाहे तो उन्हें सहन न करके जेलको महल मानकर उसे आबाद करेंगे? थोड़े ही दिनोंमें पता चल जायेगा कि हममें कितना पानी है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-२-१९०७
  1. फील्ड मार्शल सर जॉन फ्रेंच (१८५२-१९२५) दक्षिण आफ्रिकी युद्धके एक सफल नायक। प्रथम विश्व-युद्धके समय फ्रांसमें ब्रिटिश सेनाकी कमान इन्हींके हाथमें थी।