पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/३८९

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३५६. लेडीस्मिथके परवाने

लेडीस्मिथ के परवानोंके बारेमें अधिक विचार करते समय हमें यह भी देखना है कि इसमें हमारा दोष कितना है। अंग्रेजीमें हम बराबर लिखते रहे हैं। समितिकी ओरसे संसद में प्रश्न पूछा जा चुका है। किन्तु हम यदि अपना घर देखें तो अनुचित न होगा।

उस अपीलके फैसलेके समय यह देखा गया कि बहीखाते ताजे लिखे मालूम होते थे; ये कभी-कभी ही लिखे जाते थे; और एक व्यक्तिको ८ पौंड वार्षिक देकर लोग लिखवाते थे। इसपर 'नेटाल विटनेस' ने कड़ी आलोचना की है। उसने कहा है कि लेडीस्मिथ निकायने जो काम किया है, वह सही है। इन सारी बातोंपर हमें विचार करना चाहिए। बहीखाते सदैव नियमपूर्वक लिखे जाने चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग मुनीम रखे। किन्तु बहीखाते नियमित रूपसे लिखे जाने चाहिए, ताकि उनके सम्बन्ध में कोई कुछ कह न सके। जिस गाँव में योग्य भारतीय मुनीम न हों, वहाँ अंग्रेजी हिसाबनवीस या वकीलसे भी लिखवाया जा सकता है। कुछ-न-कुछ लोभ छोड़े बिना हम कभी कामयाब नहीं होंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-२-१९०७
 

३५७. केपका प्रवासी अधिनियम

समाचारपत्रोंमें इस आशयके तार छपे हैं कि [साम्राज्यीय] सरकारने केपके नये प्रवासी अधिनियमको मंजूरी दे दी है और उसपर जल्दी ही अमल होने लगेगा। मुख्य अन्तर यह है कि पहले दक्षिण आफ्रिकाके किसी भी भागके सारे भारतीयोंको केपमें दाखिल होनेकी इजाजत थी, अब केवल पुराने निवासी ही आने दिये जायेंगे। इसके सिवा दूसरे फर्क भी हैं। हमारी समझमें इन परिवर्तनोंके लिए केपके भारतीयोंकी लापरवाही कुछ हद तक जिम्मेदार है। यह बहुत सम्भव है कि कड़े संघर्षके बाद भी भारतीय सफल न होते, किन्तु तब हमने अपना कर्तव्य तो किया होता। इसके सिवा केप संघर्षके लिए ऐसी सुविधाएँ देता है जो अन्यत्र प्राप्त नहीं हैं। केपके भारतीय इन सुविधाओं से लाभ नहीं उठाते।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-२-१९०७