३६२. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
[फरवरी २६, १९०७]
अनुमतिपत्रोंकी सूचना
यहाँके सरकारी 'गज़ट' में सूचना प्रकाशित हुई है कि ऐसे भारतीयोंको, जो ट्रान्सवालमें हों, और यह सिद्ध कर सकें कि वे सन् १८९९ में ट्रान्सवालमें थे और लड़ाईके समय या उसके ऐन पहले लड़ाईके कारण ट्रान्सवाल छोड़कर बाहर चले गये थे, ३१ मार्चके पहले अर्जी देनेपर अनुमतिपत्र दे दिया जायेगा। इसके बाद जिसके पास अनुमतिपत्र नहीं होगा उसपर मुकदमा चलाया जायेगा। इस सूचनाका अर्थ यह हुआ कि जिन लोगोंके पास पुराने पंजीयनपत्र हों और वे अभी ट्रान्सवालमें रह रहे हों, अथवा जिनके पास दूसरे साधन तो हों लेकिन पीला अनुमतिपत्र न हो, उन्हें ३१ मार्च तक अनुमतिपत्र ले लेना चाहिए।
फ्रीडडॉर्प अध्यादेश
फ्रीडडॉ अध्यादेशके सम्बन्ध में दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिके एक सदस्यने लोकसभा में प्रश्न किया था। उसका श्री विंस्टन चर्चिलने उत्तर दिया है कि उस सम्बन्धमें भारतीयोंको मुआवजा दिलवानेके लिए लॉर्ड सेल्बोर्नसे बातचीत हो रही है। इससे मालूम होता है कि श्री रिच समितिका काम जोरोंसे कर रहे हैं और उनके कामका असर मालूम होने लगा है। इस तारके कारण यहाँ ब्रिटिश भारतीय संघकी बैठक हुई थी। उसमें यह निर्णय किया गया कि फीडडॉपके सम्बन्धमें फोटोके साथ 'इंडियन ओपिनियन' का परिशिष्ट निकाला जाये और उस सम्बन्धमें तार भेजा जाये। इस निर्णयके आधारपर समितिने लम्बा तार भेजा है।[१] उसका सारांश यह है कि भारतीयों के पास उस बस्तीमें जमीन, मकान, सामान और उधारी कुल मिलाकर १९,००० पौंड तक की जायदाद है; और उसमें ७५ के करीब भारतीय रहते हैं।
एशियाई भोजनगृह
इस सम्बन्धमें जोहानिसबर्ग नगर-परिषदकी ओरसे पत्र आया है कि उन्होंने जो वार्षिक दर निश्चित की है उसमें बिलकुल कमी नहीं की जायेगी। इसपर संघने फिर पत्र लिखा है।
रेलकी असुविधा
श्री कुवाडियाको सवारी गाड़ीमें प्रिटोरिया नहीं जाने दिया गया और श्री जेम्स नामक भारतीयका जर्मिस्टन आते हुए एक कंडक्टरने अपमान किया। इस सम्बन्धमें मुख्य प्रबन्धकको पत्र लिखा गया है। उसकी ओरसे उत्तर मिला है कि इसकी जाँच की जा रही है।
- ↑ देखिए "तार : द॰ आ॰ क्रि॰ भा॰ समितिको", पृष्ठ ३५३