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नीतिधर्म अथवा धर्मनीति—८

मनमें नहीं उठता। मैथ्यू आर्नल्डने कहा है : एक समय था जब मैं अपने मित्रके लिए स्वास्थ्य, विजय और कीर्तिकी कामना किया करता था। पर अब वैसा नहीं करता। क्योंकि मेरे मित्रका सुख-दुःख, स्वास्थ्य, विजय और कीर्तिपर अवलम्बित नहीं है। अतः अब हमेशा मेरी यह कामना रहती है कि उसकी नैतिकता सदा अचल रहे।[१] इमर्सन कहता है, भले आदमीका दुःख भी उसका सुख है, और बुरे आदमीका धन और कीर्ति दोनों ही उसके और दुनियाके लिए दुःख-रूप हैं।

उपर्युक्त विषयसे सम्बन्धित कविता

गर बादशाह होकर अमल
मुल्कों फिरा तो क्या हुआ
दो दिन का नरसिंगा बजा
भूँ-भूँ हुआ तो क्या हुआ।
गुल-शोर मुल्को मालका
कोसों हुआ तो क्या हुआ
या हो फकीर आजादके
रंगो हुआ तो क्या हुआ।
गर यूँ हुआ तो क्या हुआ
और वूँ हुआ तो क्या हुआ।
दो दिन तो यह चर्चा हुआ
घोड़ा मिला हाथी मिला।
बैठा अगर हौदे उपर
या पालकीमें जा चढ़ा।
आगे को नक्कारे निशां
पीछेको फौजोंका परा
देखा तो फिर एक आन में
हाथी न घोड़ा, न गधा।
गर यूँ हुआ तो क्या हुआ
और वूं हुआ तो क्या हुआ?

अब देख किसको शाद हो,
और किस पे आँखें नम करें?
यह दिल विचारा एक है
किस-किसका अब मातम करें?
या दिल को रोवें बैठकर
या दरदो दुःखको कम करें
यांका यही तूफान है
अब किसकी जूती गम करे।
गर यूँ हुआ तो क्या हुआ
और दूँ हुआ तो क्या हुआ।
गर तू 'नजीर' अब मर्द है
तो जालमें भी शाद हो,
दस्तारमें भी हो खुशी
रूमालमें भी शाद हो।
आजादगी भी देख ले,
जंजालमें भी शाद हो।
इस हालमें भी शाद हो,
उस हालमें भी शाद हो।
गर यूँ हुआ तो क्या हुआ,
और वूं हुआ तो क्या हुआ?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-२-१९०७

  1. I saw him sensitive in frame,
    I knew his spirits low,
    And wished him health, success and fame—
    I do not wish it now.
    For these are all their own reward,
    And leave no good behind :
    They try us—oftenest make us hard,
    Less modest, pure, and kind.