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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री दाउद मुहम्मदने सिद्ध किया है कि विवेकशील उपनिवेशियोंने भारतीय व्यापारियोंको कमसे-कम जितने का हकदार माना है, उससे कुछ भी ज्यादाकी माँग उन्होंने नहीं की है। सभा द्वारा पास किये गये पहले प्रस्तावमें[१] भारतीय समाजकी परवाना अधिनियम सम्बन्धी शिकायतोंको ठोस रूपमें रखा गया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि मौजूदा कानूनमें संशोधनसे कम अन्य किसी उपायसे इस कठिनाईका मुकाबला सन्तोषजनक रूपसे नहीं किया जा सकता।

दूसरा प्रस्ताव[२] हालके परवाना-सम्बन्धी मामलोंका परिणाम था। भारतीय समाजका कहना है कि नगरपालिका-मताधिकारके होते हुए जब भारतीयोंको नगरपालिकाओंके हाथों घोर अन्याय झेलना पड़ा है, तब नगरपालिका-मताधिकार से वंचित कर दिये जानेपर तो उनकी हालत न जाने और भी कितनी बदतर हो जायेगी। अतएव सभामें नेटालके ब्रिटिश भारतीय करदाताओंको नगरपालिकाके सदस्य चुननेके अधिकारसे वंचित करने के प्रयत्नसे बचानेकी आवश्यकतापर जोर दिया गया।

दोनों प्रस्ताव औपनिवेशिक देशभक्त संघको[३] पूरा जवाब देते हैं और बतलाते हैं कि दोनों समाजोंके अध्यक्षोंके लिए यह कितना जरूरी है कि वे आपसमें मिलकर रहें और एक कामचलाऊ समझौता ढूँढ निकालें। हमें आशा है कि श्री पाइंट, जो हमारे खयाल से एक नर्म विचारवाले आदमी हैं, हमारे सुझावपर विचार करेंगे और भारतीयोंके प्रवास तथा भारतीयोंकी प्रतियोगिताके कंटीले सवालके वास्तविक निबटारेका मार्ग प्रशस्त करके उप- निवेशियों का सम्मान प्राप्त करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन १६-३-१९०७
 

३८५. लॉर्ड सेल्बोर्नका खरीता

ट्रान्सवालके एशियाई-विरोधी अध्यादेशके बारेमें लॉर्ड सेल्बोर्न द्वारा लॉर्ड एलगिनको भेजा गया खरीता अब मिला है। हमको खेदपूर्वक कहना पड़ता है कि परमश्रेष्ठने अपनी साधारण न्यायपरायणताके बावजूद इस सारे खरीतेमें अपनेको एक निष्पक्ष शासन तथा सम्राट्का प्रतिनिधि प्रकट करने के बजाय एक पक्षपातपूर्ण व्यक्ति प्रकट किया है।

अभी हम ट्रान्सवालमें अनधिकृत एशियाइयोंकी कथित बाढ़को लेंगे। हमको बिना हिच-किचाहटके कहना होगा कि परमश्रेष्ठने उस वक्तव्यके समर्थन में लेशमात्र भी साक्षी उपस्थित नहीं की है, जिसे ट्रान्सवालका भारतीय समाज बार-बार चुनौती दे चुका है। लॉर्ड सेल्बोर्नने

  1. प्रथम प्रस्ताव में विक्रेता परवाना अधिनियम के प्रशासनके ढंगपर आपत्ति की गई थी और स्थानीय तथा साम्राज्यीय सरकारोंके हस्तक्षेपकी प्रार्थना की गई थी। आगे इसमें यह माँग की गई थी कि कानूनमें "इस प्रकार परिवर्तन कर दिये जायें कि निहित स्वार्थोकी रक्षा हो सके।"
  2. दूसरे प्रस्ताव में "नगरपालिकाके चुनावोंमें ब्रिटिश भारतीय करदाताओंको मताधिकार देकर उनके अधिकारों की रक्षा" करनेके लिए साम्राज्य सरकारसे प्रार्थना की गई थी। नेटाल नगरपालिका विधेयक में नगरपालिकाके चुनावोंमें ब्रिटिश भारतीयोंको मताधिकार से वंचित करनेका प्रस्ताव किया गया था।
  3. देखिए खण्ड २, पादटिप्पणी पृष्ठ ९०।