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नेटालकी सार्वजनिक सभा

साक्षीके रूपमें उस रिपोर्टका उल्लेख किया है, जिसे श्री बर्जेसने समुद्र तटपर भारतीय यात्रियोंसे पूछताछ के बाद तैयार किया था। इस रिपोर्टसे अधिक से अधिक यही पता चलता है कि कुछ भारतीय दूसरोंके अनुमतिपत्रोंके सहारे ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेका प्रयत्न करते हैं, और ट्रान्सवालकी सीमापर पहुँचने के पूर्व ही उन भारतीयोंके उस प्रयत्नको सफलतापूर्वक विफल कर दिया जाता है। कुछ भारतीयों द्वारा बिना कानूनी अधिकारके ट्रान्सवालमें प्रवेशके इक्के-दुक्के प्रयत्नोंसे कभी इनकार नहीं किया गया है। फिर भी इस प्रकारकी कोशिशोंके आधारपर इस तरहका कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि ऐसा एक भी भारतीय सफलतापूर्वक प्रवेश पा चुका है। "अनुमतिपत्रोंका व्यापार करनेवाली संगठित एजेंसी" के आरोपके बारेमें उन परिस्थितियोंके अलावा, जिन्हें प्रकट नहीं किया गया और जो उनकी (समुद्रतटीय एजेंटकी) नजरमें आई हैं, कोई गवाही पेश नहीं की गई। अब ब्रिटिश भारतीय संघका यह साफ कर्तव्य है कि वह उस साक्षीको पेश करनेकी माँग करे जिसके आधारपर यह बयान दिया गया है। उससे पहले अध्यादेश निकालने की आवश्यकता सिद्ध नहीं होती।

हम देखते हैं कि इस तथ्य के बावजूद लॉर्ड सेल्बोर्नके खरीतेको लेकर 'ट्रान्सवाल लीडर' ने एक उत्तेजक लेख प्रकाशित किया है। 'लीडर' गम्भीरतापूर्वक पूछता है कि दक्षिण आफ्रिका में भारतीयोंकी हुकूमत चलेगी या गोरोंकी? और यह सब इसलिए कि लॉर्ड एलगिनने सरकारी विरोध होनेपर भी न्याय करनेका साहस किया है। इसके बाद 'लीडर' क्रोधान्ध होकर कहता है कि यदि भारतीय दक्षिण आफ्रिकामें हुकूमत करनेकी ऐसी कोई कोशिश करें तो उसका मुकाबला आवश्यकता होनेपर खून बहा कर भी किया जाना चाहिए। किन्तु हम 'लीडर' को विश्वास दिला दें कि ऐसे किसी पराक्रमी उपायकी जरूरत नहीं पड़ेगी; क्योंकि ब्रिटिश भारतीयोंकी दक्षिण आफ्रिकामें हुकूमत करनेकी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं है। हम अपने सहयोगीसे अनुरोध करेंगे कि वह उस वक्तव्यको[१] सावधानीसे पढ़े, जो शिष्टमण्डलने लॉर्ड एलगिनके सामने दिया था। और हम विश्वास दिलाते हैं कि उससे पता चल जायेगा कि लॉर्ड एलगिनने अध्यादेशके विरुद्ध अपने निषेधाधिकारका प्रयोग क्यों किया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-३-१९०७
 

३८६. नेटालकी सार्वजनिक सभा

डर्बनमें हुई आम सभाका विवरण[२] हम अन्यत्र दे रहे हैं। उस विवरणकी ओर हम सब पाठकोंका ध्यान आकर्षित करते हैं। इतनी बड़ी सभाका होना और भिन्न-भिन्न गाँवोंसे प्रतिनिधियोंका आना कांग्रेस मन्त्रियोंकी लगन-शीलता प्रकट करता है। सभा द्वारा स्वीकार किये गये प्रस्तावोंका प्रभाव बड़ी सरकार और स्थानीय सरकारपर हुए बिना नहीं रहेगा। किन्तु हमें चेता देना चाहिए कि इसके बाद जो काम करना बाकी है वह यदि नहीं होगा तो जमा हुआ प्रभाव निःशेष हो जायेगा और हमारी स्थिति खाईसे निकल कर कुऍमें गिरने की-सी हो जायेगी।

  1. देखिए "आवेदनपत्र : लॉर्ड एलगिनको", पृष्ठ ४९ से ५७।
  2. देखिए "सार्वजनिक सभा", पृष्ठ ३८१-८२।