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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाता रहा है। निःसन्देह हमारा विचार है कि कांग्रेस तबतक इस मामलेको चलाती रहे जबतक कि यह शुल्क हटाया नहीं जाता।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-३-१९०७
 

४०७. ट्रान्सवाल एशियाई अध्यादेश

ट्रान्सवालके भारतीयोंकी जो स्थिति गत सितम्बर में थी वही आज फिर हो गई है। आज सबकी दृष्टि इसपर है कि ट्रान्सवालके भारतीय क्या करते हैं।

उनकी प्रतिक्रियापर सारे भारतीय निर्भर हैं। जो ट्रान्सवालमें होगा वही समस्त दक्षिण आफ्रिकामें होना सम्भव है।

मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता

आप मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता, इस कहावतके अनुसार यदि ट्रान्सवालके भारतीय जेल जाने के प्रस्तावपर दृढ़तासे नहीं डटे रहेंगे तो सर्वस्व खो बैठेंगे। अधिकार उनके हाथसे ही जायेंगे, इतना ही नहीं, दक्षिण आफ्रिकाके अन्य भारतीयोंको भी अधिकारोंसे हाथ धोना पड़ेगा।

यदि ट्रान्सवालका भारतीय समाज जेलके प्रस्तावको ठीक तरहसे नहीं निभायेगा तो वह थूककर चाटने के समान होगा। गोरे हँसी उड़ायेंगे, हमें नामर्द और डरपोक कहेंगे तथा समझने लगेंगे कि हमपर जितना भी बोझ लादा जायेगा, हम उसे उठा लेंगे। इसके अलावा भारतीय समाज के लिखने या बोलनेपर बिलकुल भरोसा नहीं रहेगा।

यदि यह विधेयक पास हो गया

यदि यह विधेयक पास हो जाता है तो ट्रान्सवालकी सरकार तेजीके साथ और भी विधेयक बनायेगी और भारतीय समाज एक-एक करके सारे अधिकार स्वयं खो बैठेगा। ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें जो कानून हैं वे ट्रान्सवालमें लागू होंगे और उसके बाद सब स्थानों में वैसा किया जायेगा। सभी व्यापारियोंको 'बाजारों' में हटाना, लोगोंको मलायी बस्ती से तेरह मील दूर क्लिप्स्प्रूट भेज देना, बस्तीके बाहर भू-स्वामित्वके अधिकार बिलकुल न देना, वगैरह बातें आजसे शुरू हो गई हैं। अब यदि भारतीय समाज जेलके प्रस्तावसे हटता है तो हम नहीं समझते कि उपर्युक्त एक भी बातमें उसकी सुनवाई होगी।

यदि इस बार साख गई तो फिर न आयेगी। दिये हुए वचनसे मुकरनेके समान हम किसी बात को बुरा नहीं मानते।

अध्यादेशका विरोध करनेके अन्य कारण

ये संक्षेपमें नीचे दिये जा रहे हैं :

१. अध्यादेशके द्वारा सभी लोगोंके अनुमतिपत्र रद हो जायेंगे और जाँच करके नये अनुमतिपत्र दिये जायेंगे।