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विक्रेता परवाना अधिनियम

नहीं है और उनका समाज बहुत छोटा, कमजोर और अल्पसंख्यक समाज है, यह सभा साम्राज्यीय सरकारसे पूर्ण संरक्षणकी प्रार्थना करती है।

[प्रस्ताव—४][१]

ब्रिटिश भारतीयोंकी इस सभा द्वारा स्वीकृत प्रस्तावोंको तार अथवा समुद्री तार द्वारा स्थानीय सरकार, माननीय उपनिवेश सचिव, परममाननीय भारत-मन्त्री और भारतके परमश्रेष्ठ गवर्नर जनरलकी सेवामें पेश करनेका अधिकार अध्यक्षको रहे और है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-४-१९०७
 

४०६. विक्रेता-परवाना अधिनियम

विक्रेता परवाना अधिनियम के अन्तर्गत एक नियमके अनुसार भारी शुल्क लागू करनेके सम्बन्धमें नेटाल सरकारने नेटाल भारतीय कांग्रेसको जो उत्तर[२] दिया है वह अत्यन्त असन्तोषजनक है। उसमें सरकारकी ओरसे केवल अपनी कार्यवाहीको उचित ठहरानेकी उत्सुकता प्रदर्शित की गई है। किन्तु मद्य परवाना अधिनियम तथा सड़क निकाय अधिनियम के साथ जो उसकी तुलना की गई है वह सर्वथा गलतफहमी में डालनेवाली है। मद्य-परवाना अध्यादेश और कानून स्वभावतः मद्य-व्यापारके लिए सदैव प्रतिबंधक होते हैं। इसलिए विधानमण्डलकी नीति स्वभावतः यह है कि परवानोंमें अभिवृद्धि रोकने के लिए जितने भी प्रतिबन्ध सम्भव हों, लगाये जायें। यह सच है, प्रत्युत्तरमें यह कहा जा सकता है कि जहाँतक भारतीयोंका सम्बन्ध है, विक्रेता-परवाना अधिनियमकी भी यही नीति है। किन्तु हमारा विचार है, सरकार ऐसा पैंतरा नहीं बदल सकती। परवाने देने के बारेमें अपील निकायोंको जो पूर्ण विवेकाधिकार सौंपा गया है। उससे इस अधिनियमके कारण कठिनाइयाँ और भी बढ़ गई हैं। १२ पौंड १० शिलिंग शुल्कके रूपमें भारी जुर्माना करनेका मतलब होगा निकायोंके पास पहुँचनेपर भी व्यवहारतः प्रतिबन्ध लगाना, इससे कुछ भी कम नहीं। सड़क निकाय अधिनियमसे तुलना करना भी ठीक नहीं है। उसमें जो अधिकार सन्निहित हैं वे बिलकुल भिन्न हैं। वे विशेष अधिकारोंको विनियमित करते हैं और सामाजिक अनर्हताको प्रश्रय नहीं देते। इसके विरुद्ध विक्रेता-परवाना अधिनियम स्वाभाविक अधिकारपर प्रतिबन्ध लगाता है। यह अधिकार अबतक निहित अधिकार समझा

  1. जोहानिसबर्गके इमाम अब्दुल कादिर बावजीर द्वारा प्रस्तावित।
  2. सरकारकी ओरसे उत्तरमें कहा गया था कि, "जिस नियमके अनुसार प्रार्थीको १८९७ के अधिनियम १८ के अन्तर्गत १२ पौंड जमा करना पड़ता है वह उचित है और अधिनियमसे उपलब्ध अधिकारके अन्तर्गत है। मैं कह सकता हूँ कि यह नियम उन अन्य नियमों के समान ही है जो उस तरहके अधिनियमोंके सम्बन्धमें पास किये गये हैं। मद्य अधिनियमके अन्तर्गत जो नियम हैं, यह उनमें से एकके जैसा ही है तथा १९०१ के सड़क-निकाय अधिनियम के अनुसार भी १५ से २५ पौंड तक जमा करने पड़ते हैं।"