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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समाज एक बार जेलका प्रस्ताव कर चुका है, यह बात सारे संसारको मालूम हो चुकी है। यदि यह कानून दिसम्बर में स्वीकार नहीं था, तो क्या अब स्वीकार हो गया? इस कानूनको लेकर ली गई जेल जानेकी शपथ सदाके लिए कायम है। हमारी प्रार्थना है कि भारतीय समाज इन विचारोंको लेकर ठीक-ठीक निश्चय करे और जेलके प्रस्तावपर डटा रहे तथा खुदा उसे अपने प्रस्तावको कायम रखनेकी हिम्मत बरुशे।

विलायतकी बहादुर महिलाएँ

ये महिलाएँ जो लड़ाई लड़ रही हैं, उसके सम्बन्ध में अभी भी तार आते रहते हैं। उनमें से सभी महिलाएँ जुर्माना न देकर जेल जाती हैं। उन्हें अबतक अधिकार प्राप्त नहीं हुए, इससे वे पस्तहिम्मत नहीं हैं, बल्कि मानती हैं कि स्वयं उन्हें भले अधिकार प्राप्त न हों, उनकी मेहनतका फल उनकी लड़कियोंको तो मिलेगा।

जेलके प्रस्तावके सम्बन्धमें कोई यह न माने कि सभी भारतीय जेल जायेंगे तभी वह भी जायेगा। परन्तु जिसे हिम्मत हो उसे जेल जाना है। उपर्युक्त महिलाओंसे सबक लेना है। यद्यपि वे बहुत कम हैं फिर भी जेल जाती हैं, और इसके द्वारा दुनियाका ध्यान इस विषयकी ओर खींचती हैं।

हम अपने सभी पाठकोंसे विनम्र निवेदन करते हैं कि उन्हें हमारे इस लेखको हृदयमें अंकित कर रखना है और बहुत सोच समझकर काम करना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-३-१९०७
 

४०८. केप तथा नेटाल [के भारतीयों] का कर्तव्य

केप तथा नेटालके भारतीयोंका इस समय यह कर्तव्य है कि वे सभायें करके ट्रान्सवालके भारतीयों के प्रति हमदर्दी व्यक्त करें। इसके अतिरिक्त उन्हें प्रस्ताव करके बड़ी सरकारको भेजना चाहिए। उन्हें हर जगह प्रस्ताव करके सरकारको नम्रतापूर्वक लिखना चाहिए कि कानून अमुक-अमुक प्रकारसे अत्याचारी है और यह रद कर दिया जाये तभी ठीक होगा। इतना याद रखना है कि ट्रान्सवाल अध्यादेश के समर्थन में हर जगहसे गोरोंकी ओरसे लॉर्ड एलगिनके नाम तार भेजे गये हैं। भाषण हर जगह गम्भीरतापूर्वक और ढंगसे किये जाने चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-३-१९०७