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४१४. कठिनाईसे निकलनेका एक मार्ग

जोहानिसबर्ग में उस दिन भारतवासियोंकी जो सार्वजनिक सभा हुई थी, उससे पता चलता है कि ट्रान्सवालमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीय किस लगनसे एक कठिन संग्राम कर रहे हैं। कार्यवाहीका केन्द्र बिन्दु निस्सन्देह दूसरा प्रस्ताव था, जिसमें सभाके अध्यक्ष और ब्रिटिश भारतीय संघके प्रधान श्री अब्दुल गनीका निहायत वाजिब सुझाव शामिल किया गया था। यदि ट्रान्सवाल सरकार भारतीयोंको राजी करने और स्थितिपर सभी दृष्टिकोणोंसे विचार करनेकी कुछ भी इच्छा रखती है तो वह उस प्रस्तावको लेशमात्र भी हिचके बिना स्वीकार कर लेगी। भारतीयोंने राजनीतिज्ञों जैसी नरमीसे स्वयं ही अपना पंजीयन दुबारा करानेका प्रस्ताव किया है। उनके पास जो दुहरे दस्तावेज हैं, वे उनको भी दूसरे दस्तावेजसे बदलने को तैयार हैं, जिसको दोनों पक्ष आपसमें मिलकर स्वीकार करेंगे और कानूनी बाध्यता न होनेपर भी, उन्होंने कुछ ऐसी पाबन्दियाँ सहन करना मंजूर किया है, जिनको सरकारने आवश्यक समझा है। यह दूसरा प्रस्ताव भारतीय समाजकी सद्भावनाका प्रमाण है और साथ ही एक नाजुक तथा कठिन परिस्थितिसे बाहर निकलनेका मार्ग भी है। यदि यह सच नहीं है कि ट्रान्सवाल- मन्त्रालय साम्राज्य-सरकारके साथ मुठभेड़के लिए आतुर नहीं है तो हमें बड़ा आश्चर्य होगा। उसे भारतीय सुझावोंके लिए कृतज्ञ होना चाहिए। और भारतीयोंको भी उस प्रस्तावसे जरा भी डरने की जरूरत नहीं है। उपनिवेशमें वर्तमान विद्वेषको ध्यान में रखते हुए, इससे उनको बेशक एक बार फिर कष्टदायक कार्यवाहीसे गुजरनेकी नौबत आ जाती है, तो भी उनके लिए उसमें से गुजरना लाजिमी है। अपनी मर्जीसे उठाये हुए इस कदमसे भारतीय समाजकी साख हमेशा के लिए बढ़ जायेगी। और सारे भारतीय सवालोंके माकूल निपटारेके लिए रास्ता साफ हो जायेगा। इसके अलावा भारतीय समाज जितने शानदार तरीकेसे झुकेगा, इस आपत्तिजनक विधेयकपर शाही मंजूरी मिलनेकी हालत में और भारतीय समाजके लिए पिछले सितम्बरके चौथे प्रस्तावको अमली जामा पहनाना आवश्यक होनेके कारण, उसकी स्थिति उतनी ही ज्यादा मजबूत हो जायगी।

'नेटाल ऐडवर्टाइज़र' ने हमें इसके लिए आड़े हाथों लिया है कि हमने, उसके शब्दोंमें, "ट्रान्सवालके प्रवासी भारतीयोंको अनाक्रामक प्रतिरोधके लिए जान-बूझकर भड़काया है।" भारतीयोंको प्रभावित करनेवाली भावनाओंमें डुबकी लगाना "ऐडवर्टाइजर" के लिए असम्भव है। यह प्रश्न शहादतका नहीं है और न प्रतिरोधके लिए प्रतिरोध करनेका है। हमको यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि राजभक्त तथा कानूनको माननेवाले समुदायके लिए अनाक्रामक प्रतिरोध न्याय प्राप्त करनेका एक सर्वमान्य तरीका है। इस प्रस्तावित जेल यात्राको अधिक अच्छे शब्दोंके अभावमें अनाक्रामक प्रतिरोधका ही नाम दिया गया है। वास्तवमें जेल जाना कानूनकी वश्यता स्वीकार करनेका कानूनी तरीका है। विधेयकमें चार बातोंकी व्यवस्था की गई है। पहली बात है पंजीयन कराना; दूसरी है, वैसा न करनेपर देशको छोड़ देना; तीसरी है, पूर्वोक्त दोनोंके न करनेपर विकल्प रखा गया हो तो जुर्माना देना; और चौथी तथा अन्तिम बात है, पूर्वोक्त तीनोंके न करनेपर जेल जाना। हम यह नहीं सोच सकते कि यदि एक भारतीय