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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी


३. जमीनके सम्बन्धमें मुझे खेदके साथ कहना चाहिए कि २१ वीं धारामें एक व्यक्तिकी जमीनके बारेमें[१] जो कुछ लिखा गया है उससे ज्यादा राहत सरकार नहीं दे सकती।
४. और भी कारणोंको लेकर कानूनके विरोध में आपत्ति की गई है। उस सम्बन्ध में मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, सरकार एशियाई समाजका अपमान नहीं करना चाहती। किन्तु इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि एशियाई लोगोंके हुलियेका सवाल मुश्किल है। नये कानूनका मुख्य हेतु यह है कि ऐसी तजवीज की जाये जिससे एशियाई लोगोंको तुरन्त पहचाना जा सके। साथ ही यह भी जाना जा सके कि यहाँ रहने का अधिकार किसको है। इस उद्देश्यको सफल बनानेके लिए नया कानून आवश्यक है। मुझे खेदके साथ कहना चाहिए कि पुनः पंजीयन के सम्बन्धमें शिष्टमण्डलने जो सुझाव दिया है वह व्यावहारिक नहीं है; क्योंकि उसके लिए अनिवार्य पंजीयन कानूनकी आवश्यकता है। इसके अलावा, यह समझमें नहीं आता, आप किस प्रकार निश्चयपूर्वक कह रहे हैं कि दूसरी एशियाई कौमें भी, जिनमें वे लोग भी आ जाते हैं जो बिना अनुमतिपत्रके हैं, आपके वचनसे बँध जायेंगी।
५. इसमें कोई शक ही नहीं कि बहुतेरे गोरे मानते हैं कि बिना अनुमतिपत्रों के इस देशमें बहुत-से एशियाई आ रहे हैं। और उन्हें लगता है कि इस तरह लोगोंके बेकायदा आनेका कारण यह है कि लोगोंको छाँट निकालने के लिए जैसी व्यवस्था चाहिए उसके अनुरूप कानून नहीं है। सरकार उनकी इस चिन्ताकी उपेक्षा नहीं कर सकती। इसके अलावा सरकारके पास तो गैरकानूनी तौरसे प्रवेश करनेवाले लोगों के खिलाफ मजबूत प्रमाण है। इस सम्बन्धमें विचार करते हुए मैं खेदके साथ देखता हूँ कि आपकी सभाओं में और भाषणोंमें लोगोंको यह सलाह दी गई है कि वे पंजीयन न करवाकर कानूनका भंग करें। आपके अपने हितकी दृष्टिसे मैं आशा करता हूँ कि आप ऐसी प्रणाली शुरू न करेंगे जिससे आपकी कौमको खास लाभ न दिये जा सकें। मैं अन्तःकरणसे आशा करता हूँ कि आपकी कौम, जो हमेशा कानूनको मान देनेका दावा करती है, अपनी वह प्रतिष्ठा बनाये रखेगी और जल्दी से जल्दी सफाईके साथ एवं कानूनके अनुसार पंजीयन कराने में सरकारकी पूरी तरह मदद करेगी। यह कानून गोरे और एशियाई दोनोंके हितकी दृष्टिसे बनाया गया है। इस कानूनको यदि बन्धनकारी नहीं माना जायेगा तो ट्रान्सवालमें बिना अनुमतिपत्रके आनेवाले एशियाइयोंको रोकनेके लिए अधिक नियन्त्रण रखने के हेतु सरकार एवं संसद दोनोंपर अधिक दबाव डाला जायेगा।

उत्तरसे पैदा होनेवाले विचार

यह उत्तर अच्छा भी है, खराब भी; भीरुतापूर्ण भी है और धमकी देनेवाला भी। अच्छा कहनेका कारण यह है कि यह विनयपूर्ण है। यदि भारतीय समाजको एकदम दुत्कारना होता तो बिना कारण दिये दो लकीरोंमें उत्तरको समेट दिया जाता। उसे खराब कहनेका

  1. यहाँ संकेत उस धाराकी ओर किया गया है, जिसके द्वारा अबूबकर आमदके वारिसोंको १८८५ के कानून ३ और भारतीयों के भूस्वामित्वसे सम्बन्धित अन्य कानूनोंसे बरी कर दिया गया था। देखिए "पत्र : जे॰ डी॰ रीजको" का संलग्न पत्र पृष्ठ १०२-०४।