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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण यह है कि हमने जो अत्यन्त उचित माँग की है उसे स्वीकार करने में भी श्री स्मट्सको विचार करना पड़ रहा है। भीरुतापूर्ण कहनेका कारण यह है कि [भारतीयोंके] जेलके विचार, [उनके] प्रस्ताव तथा भाषणसे सरकारको डर लग रहा है कि कहीं भारतीय समाज इतना जोर न दिखा दे। और यदि कहीं जोर दिखा दिया तो कानून बेकार हो जायेगा। धमकीवाला कहनेका कारण यह है कि यदि हम डरकर जेलकी बातको छोड़ दें तो सरकार संकटपूर्ण स्थिति से बच जायेगी, इस विचारसे हमें धमकी दी गई है कि यदि हम कानूनको स्वीकार न करेंगे तो हमारे साथ और भी ज्यादा सख्ती बरती जायेगी।

अब क्या किया जाये? यह दरअसल कसौटीका अवसर है। हमपर रंग चढ़ा होगा और हम आबरूकी परवाह करते होंगे तो जीत जायेंगे। सरकारको धमकीसे जरा भी नहीं डरना है। क्योंकि जो कानून पास किया गया है उससे ज्यादा दुःख और वह क्या देगी? हमारी इज्जत लेनेसे अधिक और दुःख क्या हो सकता है? हमें एक तरफ तो समझाया जा रहा है कि हम कानूनको कार्यान्वित करने में मदद करें। दूसरी ओर कानून ऐसा पास किया गया है कि समूचे भारतीय समाजमें ऐसा एक भी विश्वास योग्य व्यक्ति नहीं जिसे पंजीयनपत्र यानी 'चोर-चिट्ठी' न देनी पड़े। सरकार हमें चोर बनाकर कानूनको कार्यान्वित करने के लिए चोरकी मदद मांगती है!

ऐसा कुछ जान नहीं पड़ता कि वे हमें एक भी अधिकार देंगे। जमीन सम्बन्धी अधिकारके बारेमें वे साफ इनकार करते हैं। बस्ती तो आँखोंमें खटकती रहती है। जिन लोगोंकी इतनी बेइज्जती कर दी गई है उनकी इससे ज्यादा बेइज्जती और क्या करेंगे? यूरोपकी नीतिके अनुसार और इस जमाने में भय बिना प्रीति नहीं होती। हम भी स्मट्सके देशवासियोंका उदाहरण लेनेपर देखते हैं कि अंग्रेज सरकार डच लोगोंको ऐसी ही दलील देती थी। राष्ट्रपति क्रूगरसे कहा गया था कि आप अमुक हक अंग्रेजोंको देंगे तो बहुत अच्छा रहेगा, नहीं तो आपको भोगना होगा। राष्ट्रपति क्रूगरने इन फुसलानेवाले शब्दोंकी ओर ध्यान नहीं दिया, न धमकीसे डरे। वे स्वयं बहादुर रहे और अपने देशवासियोंको बहादुर बनाये रखकर स्वयं ही अमर नहीं हुए, उन्होंने अपनी प्रजाको भी अमर कर दिया। इसके परिणामस्वरूप आज उसी प्रजाने अपना राज्य फिरसे ले लिया है। बहुत-से डच लोग युद्धमें कूदे। स्त्री-बच्चे तबाह हुए। लेकिन बचे हुए लोग आज राज्य भोग रहे हैं। इस तरह मरनेवाले मरे नहीं बल्कि अमर हैं। ऐसा ही, किन्तु दूसरे तरीकेसे, हम करें तभी हम जीतेंगे। श्री स्मट्स या दूसरे लोग जितना भी समझायें, उसे हमें चीनी चढ़ी हुई जहरकी टिकिया मानकर छोड़ देना है। हम आज यदि पीछे पैर रखेंगे तो समझिए कि हमेशा के लिए फँस गये। संघकी बैठकने इन सारी बातोंका विचार करके कार्यवाहक अध्यक्ष श्री ईसप मियाँके हस्ताक्षरसे पिछले गुरुवार, तारीख ११ को श्री स्मट्सके नाम पत्र भेजा है। वह पत्र विनयपूर्ण, किन्तु अपनी नाक रख लेनेवाला है। उसका अनुवाद निम्नानुसार है :

संघका जवाब

एशियाई विधेयकके सम्बन्धमें भारतीय समाजने जो सूचना दी है उससे सम्बन्धित आपका ८ तारीखका पत्र मिला। सरकारने सहानुभूतिपूर्वक स्पष्ट उत्तर भेजा, उसके लिए मेरा संघ बहुत आभारी है। फिर भी मैं सरकारके विचारार्थ निम्न निवेदन करता हूँ। भारतीय समाजने जो आपत्तियाँ की हैं वे इतनी महत्त्वपूर्ण हैं तथा जो सूचनाएँ