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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो और जो निराधार हों। यदि स्त्री-पुत्रोंका निर्वाह दूसरी तरह होता हो, तो उन्हें छोड़कर जो दूसरी तरह निराधार हैं और मुझपर आश्रित हैं उनका पहला हक है। अर्थात् यदि हरिया[१] कमाता हो और गोको[२]न कमाता हो, तो उसका पहला हक। सब कमाते हों और आप न कमाते हों, तो आपका पहला हक। यों सब कमाते हों और पुरुषोत्तम न कमाता हो और अभी आपके साथ ही हो, तो उसका पहला हक । इसमें केवल निर्वाहके हकका समावेश होता है, ऐशो-आराम या मोह पूरा करनेका नहीं। इसीमें से यदि दूसरे उपप्रश्न पैदा हों तो उनके उत्तर आप बना सकेंगे। यह सारा बहुत निर्मल मनसे लिखा है।

१६. इस सवालका जवाब पहलेके जवाबोंमें आ जाता है।

१७. यह पत्र, अथवा इसका कोई हिस्सा, आप जिसे बताना चाहें, उसमें मेरी आनाकानी नहीं है। हमारे बीच में इन्साफ कौन करे, यह मैं नहीं जानता। मैं आपके अधीन हूँ। मैं आपके समान नहीं हूँ कि हमारे बीच कोई तुलना करे। फिर भी जिन्हें आप बतायेंगे, वे यदि मुझसे कुछ कहेंगे तो मैं उसे सुनूँगा और बुद्धिके अनुसार उत्तर दूँगा।

मैं आपकी पूजा करता हूँ, क्योंकि आप बड़े भाई हैं। हमारा धर्म सिखाता है कि बड़ेको पूज्य माना जाये। यह नीति मैं मानता हूँ। सत्यको उससे अधिक पूजता हूँ। यह भी हमारा धर्म सिखाता है। मेरे लिखने में यदि कहीं भी दोष दिखाई दे, तो आप निश्चय समझिए कि मैंने सत्यके आग्रहसे सारे जवाब दिये हैं, आपको दुःख पहुँचाने या थोड़ा भी आपका अनादर करने के लिए नहीं। हमारे बीच पहले मतभेद नहीं था, बुद्धि-भेद नहीं था। इसलिए आपकी प्रीति थी। अब आपकी अप्रीति है, क्योंकि मेरे विचारोंमें जैसा मैंने ऊपर बताया वैसा फेरफार हुआ है। इसे आप दोषरूप मानते हैं। इसलिए मैं समझता हूँ कि मेरे कुछ जवाब भी रुचिकर नहीं होंगे। किन्तु सत्यका पालन करते हुए मेरे विचार बदले हैं, इसलिए मैं लाचार हो गया हूँ। आपके प्रति मेरी भक्ति वैसी ही है, उसने रूप अलग ले लिया है। यह सब यदि हम किसी दिन इकट्ठे हुए और आपने सुनना चाहा, तो विशेष रूपसे समझाऊँगा और आपसे प्रार्थना करूँगा। किन्तु यहाँके संयोग ऐसे हैं, यहाँके कर्तव्य इतने बढ़ गये हैं। कि कब छूट सकूँगा, कह नहीं सकता।

मैंने शुद्ध मनसे लिखा है, इतना विश्वास रखें। ऐसा करेंगे, तो आपका रोष नहीं रहेगा। जहाँ आप यह मानें कि मैं भूल कर रहा हूँ, वहाँ मुझपर दया करें।

आपका पत्र हरियाको पढ़ा दिया है। वह इस उद्देश्यसे कि आप चाहे जैसा समझें, फिर भी हम दोनों पुराने जमाने के हैं, मैं ऐसा मानता हूँ। और यद्यपि आप मुझे बहुत रोषसे लिखते हैं, फिर भी छोड़ते . . . . सच्चा रूप बताता है।[३] उसका मैंने जो जवाब लिखा है, उसकी नकल उससे कराता हूँ, जिससे आपको पढ़ने में दिक्कत न हो। आप मुझसे जो रोष रखते हैं, उसका मैं क्या जवाब देता हूँ, यह उसे मालूम हो जाये और उसमें कुछ सीखने योग्य हो तो अपने कर्मके अनुसार सीखे।

गांधीजी स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती मसविदेकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ९५२४) से।
  1. हरिलाल, गांधीजीके ज्येष्ठ पुत्र।
  2. गोकुलदास।
  3. मूलमें कागजके फट जानेसे यहाँ एक पंक्ति पढ़ी नहीं जाती।