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४४०. पत्र : कल्याणदास मेहताको

[जोहानिसबर्ग]
अप्रैल २३, १९०७

प्रिय कल्याणदास,

कुछ समयसे मुझे तुम्हारा कोई समाचार नहीं मिला। जरा जागो। मैं फुलमनियाके[१] पक्षमें सन् १९०६ का बैनामा नं॰ १२८७ साथ भेज रहा हूँ। उसका एक सन्देशवाहक कल आया था और कहता था कि वह बीमार है और बैनामा माँगती है। इसलिए मैं उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूँ। यदि इसकी माँग आये तो रसीद लेकर उसे दे दो। यह भी मालूम करो कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी।

तुम्हारा विश्वस्त,]

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४७३६) से।
 

४४१. उपनिवेश सम्मेलन और भारतीय'

उपनिवेश सम्मेलनको लॉर्ड मिलनरने जो पत्र लिखा है उसमें से भारतीयोंसे सम्बन्धित अंश हमने अन्यत्र दिया है। उससे मालूम होगा कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंको जो कष्ट भोगने पड़ रहे हैं उनसे सब जगह खलबली मची हुई है। लॉर्ड मिलनरकी रायमें उपनिवेशोंकी तुलना में भारतका मूल्य अधिक है और यदि कभी यह प्रश्न उठे कि उपनिवेशोंको छोड़ा जाये या भारतको, तो अंग्रेज प्रजा उपनिवेशोंको ही छोड़नेका निश्चय करेगी। परन्तु ऐसा अवसर कब आये, यह बात हमारे हाथमें है। यदि हम अपने दोषोंको दूर कर दें तो कह सकते हैं कि वह समय आज ही है। जबतक शासकवर्ग [ब्रिटिश लोगोंको] यह समझा सकेगा कि हम बहुत हानि सहन करने में समर्थ हैं तबतक उपनिवेशकी बात मान्य रहेगी, और भारतीय प्रजापर अधिकाधिक बोझ पड़ता रहेगा। यह संसारका नियम है। साहूकार अधिक साहूकार बनता है; गरीबकी गरीबी बढ़ती है। बोझ ढोनेवाले अधिक बोझ उठाते हैं, और जो नहीं उठाते उन्हें कोई नहीं कहता। मतलब यह कि सरकारको हमें बतला देना है कि उपनिवेशमें अब हम अधिक बोझ नहीं उठाना चाहते।

लॉर्ड मिलनरने यह भी कहा है कि भारतकी आवश्यकता सारी अंग्रेज जनता और उपनिवेश दोनोंको बहुत है। इसका मूल्य आँका नहीं जा सकता। ऐसा क्यों नहीं हो सकता? भारतका राजस्व ४४ मिलियन (एक मिलियन यानी दस लाख) पौंड है। उसमें से २२ मिलियन तो सेनापर खर्च होता है। यानी इतने पौंडोंका अधिकांश भाग अंग्रेजी सैनिकोंके वेतनमें और अंग्रेजी माल खरीदने में चला जाता है। ४४ का तीसरा भाग, यानी लगभग १५ मिलियन, पूराका पूरा इंग्लैंड चला जाता है। शेष रकम ही भारतमें रहती है।

  1. गांधीजीके बदरिया नामक एक मुवक्किलकी पत्नी।