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शुद्ध विचार

यानी अंग्रेजों और भारतीयोंकी साझेदारीमें ८३ प्रतिशत भाग अंग्रेजोंका और १७ प्रतिशत भारतीयोंका है। कुल पूंजी भारतकी है। स्पष्ट ही यह साझा अंग्रेजी राज्यके लिए लाभप्रद है। अब उपनिवेशियों की स्थिति देखें तो पता चलता है कि पूंजी सारी अंग्रेज देते हैं और उसका लाभ सारा उपनिवेश खाते हैं। कोई पूछे कि ऐसा एकपक्षी न्याय क्यों है, तो इसका उत्तर एक ही है कि उपनिवेशवाले समर्थ हैं, और इसलिए दो हिस्से पाते हैं। वे इंग्लैंड की बराबरीके हैं। हम भी वैसे बनें तो हमें भी न्याय मिल सकता है। 'बोलतेके बेर बिकते हैं', यह अंग्रेजी राज्यकी रीति है। किन्तु बोलनेका अर्थ हल्ला मचाना नहीं है। हल्लेके साथ-साथ बल भी चाहिए। दक्षिण आफ्रिकामें अथवा भारतमें हमारा बल जेल है। यदि हम अपने ऊपर होनेवाले अत्याचारमें सहयोग न करें तो हम मुक्त ही हैं। रुखानीमें लकड़ी की मूँठ लगी होती है, तभी लकड़ी कटती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-४-१९०७
 

४४२. डर्बनके आसपास मलेरिया[१]

भारतीयोंके बीच मलेरियाका जोर बहुत दिखाई दे रहा है। डॉक्टर नानजीकी अध्यक्षता में अब इसके लिए एक समिति बनाई गई है। उसमें बहुत भारतीय सहायता कर रहे हैं। अनुमान है कि बीमारोंकी संख्या साधारणतः सौ रहेगी व रोजका खर्च ४ पौंड होगा; यानी व्यक्तिश: १ शिलिंगसे भी कम। कुछको तो दवाके अलावा पतला भात वगैरह भी देना होगा, इसलिए रोजाना ४ पौंड खर्च ज्यादा नहीं माना जा सकता। इस विषय में नेताओंको पूरे उत्साहसे मदद करनी चाहिए और हमें आशा है कि ठीक तरहसे मिहनत की जायेगी तो थोड़े समय में बीमारी मिट जायेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-४-१९०७
 

४४३. शुद्ध विचार
सच्चा स्वदेशाभिमान क्या है?

भारतमें आजकल अपना-अपना खयाल या स्वार्थ अधिक दीख पड़ता है। उसके बदले स्वदेशका 'अर्थ' यानी स्वदेशाभिमान होना जरूरी है। परन्तु जब हम सुधरना ही चाहते हैं तब यह स्मरण रखना आवश्यक है कि 'स्वदेशके अर्थ' में औरोंसे द्वेष करना नहीं आता। औरोंसे द्वेष करनेकी स्थितिपर तो तब पहुँचा जा सकता है जब हम 'स्वदेशका अर्थ' सुरक्षित करनेकी स्थितिपर पहुँच जायें। इसलिए यह भय कम है कि हम अभी ही परदेशका द्रोह करेंगे। फिर भी सर विलियम वेडरबर्नने इस सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है वह जानने और विचारने योग्य है। इसलिए 'इंडियन रिव्यू' से उसका सारांश नीचे दिया जा रहा है :

  1. देखिए "मलेरिया और भारतीयोंका कर्तव्य", पृष्ठ ३९१ तथा "नेटाल भारतीय कांग्रेसकी बैठक", पृष्ठ ४२५-२६।