पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४५८. लेडीस्मिथका परवानेका मुकदमा

इस सम्बन्धमें दुबारा अपील की जा चुकी है। परवाना अदालतने परवाना न देनेका निश्चय किया है। यद्यपि यह खेदजनक है, फिर भी भारतीय समाजको हम बधाई देते हैं। क्योंकि इतना सख्त अन्याय होगा तभी हम स्वयं जागेंगे, और बड़ी सरकारको जगायेंगे। एक भी भारतीय व्यापारीको दूकान बन्द करनेकी आवश्यकता नहीं है। इस समय हमारे पत्रमें जगहकी इतनी कभी है कि अभी विशेष विचार करनेकी गुंजाइश नहीं। अगले सप्ताह करनेका इरादा है।[१]

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-५-१९०७
 

४५९. गिरमिटिया भारतीय

डर्बन निगमने प्रस्ताव पास किया है कि गिरमिटिया भारतीयोंको कम चावल दिया जाये। इससे गिरमिटियोंने काम बन्द कर दिया है और वे जेल जानेको भी तैयार हो गये हैं। ऐसा ही उन्होंने पहले भी किया था। उस समय मजिस्ट्रेट दयालु था। उसने देखा कि नियमानुसार उन्हें चावलके बदले पुपु[२] दिया जा सकता हो तब भी नियमका उपयोग करना जुल्म होगा। इसलिए उसने उन्हें छोड़ दिया और निगमको सलाह दी कि महँगा मिले तब भी हमेशा के अनुसार चावल ही दिया जाये। वैसी ही हालत आज है। लेकिन मजिस्ट्रेट ठहरे श्री बीन्स। उन्होंने तो कानूनके अनुसार ही फैसला कर दिया है, और उनमें से कईको एक-एक पौंड जुर्माना किया है। इस सम्बन्धमें हमें आशा है कि भारतीय वकील जाँच-पड़ताल करके व्यवस्था करेंगे।

इसी सिलसिले में ट्रान्सवालके कानूनका विचार करें तो हम देख सकते हैं कि कानून जुल्मी मालूम हो तो उसका विरोध करनेकी हिम्मत गरीब गिरमिटिया भी कर सकते हैं और जेल जाने को तैयार रहते हैं। बहुत बार ऐसे उपायोंसे न्याय मिल जाता है, यह हमने गिरमिटिया लोगोंके सम्बन्ध में देख लिया। अतः यदि गिरमिटिया सिर्फ अपने स्वार्थके लिए इतना करते हैं तो भारतीय कौमको तो ट्रान्सवालमें ऐसा करना ही चाहिए। इसमें कौन शंका कर सकता है?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-५-१९०७
  1. देखिए "लेडीस्मिथकी लड़ाई", पृष्ठ ४९६।
  2. मकईका दलिया।