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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खिलाफ हो सकती थीं उतनी ही अब भी की जा सकती हैं, बल्कि उससे ज्यादा ही। क्योंकि उसके लिए हम बहुत मेहनत कर चुके और डंके की चोट अपना विरोध जाहिर कर चुके। इतना ही नहीं, हमने इस कानूनको इतना खराब माना कि बहुत-सा चन्दा इकट्ठा किया तथा लगभग सात सौ पौंड खर्च करके विलायत शिष्टमण्डल भेजा। शिष्टमण्डलने वरिष्ठ अधिकारियोंके समक्ष लॉर्ड एलगिनसे नीचे लिखे अनुसार कहा :

हमें श्रीमानके समक्ष एक विशेष बात भी रख देनी चाहिए, और वह है सार्वजनिक सभाका चौथा प्रस्ताव। यह प्रस्ताव सभाने शपथ लेकर नम्रता एवं दृढ़ता के साथ सर्वसम्मति से पास किया है। प्रस्ताव यह है कि यदि बड़ी सरकार किसी दिन इस कानूनको मंजूर कर दे तो उससे होनेवाले महान अपमानको सहन करनेके बदले भारतीय कौम जेल जायेगी। कौमका मन इतना उत्तेजित हो गया है। आजतक हमने बहुत कुछ सहन किया है। किन्तु इस कानूनका दुःख असह्य है इसलिए आपके पास आजिजी करनेके लिए छः हजार मील आये हैं। यह कानून अन्तिम सीमापर पहुँच चुका है।

मानो इतना काफी न हो, और जेल जाने के प्रस्तावके बारेमें किसीके मनमें बिलकुल शंका न हो, ऐसे ढंग से हमने दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिकी स्थापना की। उसमें बहुत से प्रसिद्ध प्रसिद्ध लोग शामिल हुए। अब यदि जेलका प्रस्ताव किसी भी बहाने से भारतीय समाज रद कर दे तो उसका क्या परिणाम होगा? यही कि दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समिति निकम्मी हो जायेगी, शिष्टमण्डलकी लड़ाईपर पानी फिर जायेगा, भारतीय समाजका जितना नाम हुआ है उतनी ही बदनामी हो जायेगी, इसके बाद भारतीय समाजके एक भी वचनपर सरकार विश्वास नहीं करेगी और हम बिलकुल नीच और हलके दर्जे के लोगों में गिने जायेंगे। इस तरह होगा तो दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके विरुद्ध जो भी कानून बनेंगे उन्हें बड़ी सरकार अविलम्ब पास कर देगी और आखिरको, जो सिर्फ कौवे कुत्तेकी जिन्दगीसे भी सन्तोष ही करते हैं, उन्हें दक्षिण आफ्रिका छोड़ना होगा। ऐसा होनेपर उसके छींटे भारतपर भी उड़ेंगे और सारा भारत हमें तिरस्कारपूर्वक देखने लगेगा, जो सर्वथा उचित ही होगा। चौथा प्रस्ताव इतना जबरदस्त, उपयोगी और भयंकर है। इसलिए हमें पूरी आशा है कि भारतीय समाज उससे नहीं फिसलेगा और सब स्वीकार करें या न करें, समझदारोंको तो अपना कर्तव्य भूलना ही नहीं चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-५-१९०७