पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/५२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

कर्मचारी

रेलका सारा काम सैनिक करते हैं, फिर भी प्रति मील ३,७२० पौंड खर्च आया है। और यथा आवश्यक सामान न होनेके कारण रेलगाड़ी प्रति घंटा १२ मीलसे अधिक नहीं चल पाती। माननीय सुलतानके एक भूतपूर्व प्रबन्धकर्ताने बातचीत करते हुए मुझसे कहा कि कोई यह नहीं मानता कि रेलवे उपयोगमें आ सकेगी। जबतक दक्षिणी भाग पूरा होगा तबतक उत्तर- वाला भाग बिगड़ जायेगा और यह बात तो अलग ही है कि रेलवेसे जाने में जितने दिन लगते हैं उतने दिनोंमें इस्तम्बूलसे जलमार्ग द्वारा जिद्दा पहुँचा जा सकता है।

भारतीय मुसलमानोंको क्या करना चाहिए?

मुझे उसी कर्मचारीने बताया कि आपके भारतीय भाई-बन्धुओंको तबतक एक पाई भी नहीं देनी चाहिए जबतक कि उनके लोगोंको निगरानीका अधिकार न मिल जाये और जिद्दासे मक्का शरीफ तक लाइन बनानेका पक्का यकीन न दिला दिया जाये। आजकल तो इतना भ्रष्टाचार चल रहा है कि रेलके पूरा होनेकी सम्भावना कम ही है। बहुत-से बड़े-बड़े सूबेदारोंने माननीय सुलतानको सूचित किया है कि रेलवेके नामसे डकैती चल रही है। लेकिन इज्जत पाशाके हजूरिये किसीकी चलने नहीं देते। लाखों पौंड आये हैं; उनमें से प्रायः २५ प्रतिशत लुटेरे अफसरोंकी जेबमें गये हैं। यात्रियोंकी ओरसे व्यक्तिगत पत्र आते हैं; उनमें वे लिखते हैं कि पानीकी या अन्य सुविधाएँ कुछ ही हैं, और मुसीबतें बहुत ज्यादा हैं। किराये की दर भी बहुत अधिक रखी गई है। दमिश्कसे ताबुक तक तृतीय श्रेणीका भाड़ा चार पौंड रखा है। अर्थात् एक मीलका एक आना हुआ। इस समय इज्जत पाशा ५०,००० पौंड खर्च करके इस्तम्बूलमें नया रेलवे-कार्यालय बनानेकी बात कह रहे हैं। यह खर्च बिलकुल बेकार है, क्योंकि बहुतेरे कार्यालय खाली पड़े हैं। किन्तु इस अन्धाधुन्ध की किसीको परवाह नहीं है।

उपसंहार

उगाहीमें २५,००,००० पौंड आ चुके हैं। नाममात्रके वेतनपर सैनिकोंसे काम करवाया जा रहा है। पाँच वर्ष में केवल ४३२ मील लाइन बनी है। ट्रेन एक घंटे में १२ मीलसे अधिक नहीं काट पाती। इंजिन केवल १६ हैं। प्रथम श्रेणीके दो और तृतीय श्रेणीके २४ डिब्बे हैं। इसके अतिरिक्त शेष खुले डिब्बोंमें यात्रियोंको ले जाया जाता है। उनमें बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। यह रेलवे केवल ठगोंके हाथमें है। हेजाजके बड़े सूबेदार अहमद हाजी पाशाने माननीय सुलतानको तार दिया था कि जबतक लुटेरे अफसर रेलपर हैं तबतक कुछ नहीं हो सकता। यह बात सच निकली है। "इसलिए", सूवेदार महोदय कहते हैं, "मुसलमानोंसे मेरी यह विनती है कि जबतक लुटेरे लोग नहीं हटते, और ठीक-ठीक यकीन नहीं होता, तबतक कोई मुसलमान कुछ भी पैसा न भेजे।"

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-५-१९०७