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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो, उसके बदले में उन्हें अपनी आजादीकी मौजूदा बेहतर हालतको बेच नहीं देना चाहिए। मेरी राय में नये विधानसे वे ऊपर बतलाई हुई बदतर हालत में पहुँच जायेंगे।

इस अपमानजनक चोटको टालने के लिए मैंने उनको यह बतलाने की धृष्टता की है कि पहले तो उनका यह फर्ज है कि वे इस कानूनके अन्तर्गत दुबारा पंजीयन करानेसे दृढ़ता के साथ, किन्तु विनयपूर्ण ढंगसे, इनकार कर दें। मैंने उनको दूसरा परामर्श यह दिया है कि यह देखते हुए कि ट्रान्सवालको उन्होंने घर बना लिया है और उसके विधायकोंके चुनावके बारेमें बोलनेका उनको जरा भी अधिकार नहीं है, उनके लिए अपनी सुनवाई करानेका केवल एक ही प्रभावशाली तरीका है कि वे इस कानूनकी शर्तोंको तोड़कर उसका आखिरी नतीजा भुगतें; अर्थात्, वे दुबारा पंजीयन कराने या देश छोड़ने या जुर्माना देनेकी अपेक्षा जेल जाना पसन्द करें। मैंने उनको तीसरा तथा अन्तिम परामर्श यह दिया है कि उपर्युक्त रुखके मुताबिक उनको अनुमतिपत्र विभागसे सब तरहका पत्र-व्यवहार बन्द कर देना चाहिए, और ट्रान्सवाल में दुबारा प्रवेश करनेकी इच्छा रखनेवाले अपने मित्रों तथा अन्य भारतीयोंसे अनुरोध करना चाहिए कि वे नये कानूनके अन्तर्गत अस्थायी या स्थायी अनुमतिपत्रके लिए प्रार्थनापत्र न दें।

यदि यह कहा जाये कि मेरी अन्तिम दोनों बातें साफ तौरसे एशियाई विरोधी ध्येयकी पुष्टि करती हैं तो कहा जाने दीजिए। इससे केवल इतना ही साबित होता है, और यह मैं प्रायः कह चुका हूँ, कि भारतवासियोंका उद्देश्य इस संघर्ष द्वारा ट्रान्सवालके अधिकसे अधिक व्यापारको हस्तगत करना नहीं है, बल्कि इस देशमें गौरव तथा आत्मसम्मानके साथ रहना है और भोजनके बदले अपने जन्मसिद्ध अधिकारको बेचना नहीं है।

मैं स्वीकार करता हूँ और मेरे अनेक अंग्रेज मित्रोंने मुझसे कहा है कि शायद मेरे परामर्श पर, व्यापक रूपमें अमल न हो सके। किन्तु यदि ऐसे मित्रोंके सन्देहका आधार ठोस प्रमाणित हो जाये तो भी मुझे सन्तोष होगा। और यदि ब्रिटिश भारतीय उस दासताको अपनाना पसन्द करें जो इस नये कानून द्वारा उनपर लादी जा रही है तो मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि हम उस पंजीयन कानूनके योग्य ही थे। निस्सन्देह इस समय हम कसौटीपर कसे जा रहे हैं और अब यह देखना बाकी है कि क्या हम इस मौकेपर सामूहिक रूपसे चेतेंगे? मेरी समझमें ऊपर बतलाई हुई स्थिति निर्विवाद है और वीर उपनिवेशियोंसे मैं उसके सम्बन्ध में उपहासके बजाय प्रशंसाका अधिकारी हूँ। उपहास अथवा प्रशंसा, कुछ भी मिले, यदि मैं या मेरे साथी कार्यकर्ता उस मार्ग से लेशमात्र भी पीछे कदम हटाते हैं, जिसे हमने अपने अन्तःकरणकी आवाजपर अपनाया है, तो यह हमारे लिए छिछोरेपन तथा पापकी बात होगी।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
स्टार, १४-५-१९०७