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४७१. ट्रान्सवालकी लड़ाई

सब चलो जीतने जंग—
'या होम[१] कहकर सब युद्धमें कूद पड़ो; विजय है आगे।
कुछ कामोंमें ढील नहीं चलती,
शंका और भय तो रोजाना हमें सताते ही रहते हैं।
अभी समय नहीं आया, कहकर जो दिन बिताते हैं,
वे बहाना करते हैं; इससे काम नहीं चलेगा, कलपर छोड़ने से कोई लाभ न होगा,
जूझ पड़नेमें सिद्धि है—यह देखकर बल आता है।
साहसके कारण ही कोलम्बस नई दुनियामें गया।
साहसके कारण ही नेपोलियन सारे यूरोपसे भिड़ा।
साहसके कारण ही लूथरने पोपका विरोध किया।
साहसके कारण ही स्कॉटने देखते ही देखते कर्ज चुका दिया।
साहसके कारण ही सारी दुनिया में सिकन्दरका नाम अमर है, यह किसीसे छिपा नहीं है।
इसलिए 'या होम' कहकर सब युद्धमें कूद पड़ो।[२]

इस प्रकार कविने[३] गाया है। यह गीत प्रत्येक भारतीयको और खासकर ट्रान्सवालके भारतीयको कण्ठस्थ कर लेना चाहिए। इसका अर्थ ठीक तरहसे समझ लेना है और फिर सम्पूर्ण बलिदानका संकल्प करके कूदना है। ट्रान्सवालके कानूनके विषयमें हम जितना विचार करते हैं उतना ही हमें लगता है कि इस कानूनको उसी तरह छोड़ देना चाहिए जिस तरह हम जहरीले साँपको छोड़ देते हैं। और उस तरह छोड़नेके लिए हिम्मतकी आवश्यकता है।

  1. पूर्ण बलिदान-वृत्तिका नारा।
  2. मूल गुजराती गीत इस प्रकार है :
    सहु चलो जीतवा जंग, ब्युगलो वागे,
    या होम करीने पड़ो, फतेह छे आगे।
    केटलाक करमो विषे, ढील नव चाले,
    शंका भय तो बहु रोज, हामने खाळे;
    हजी समय नथी आवियो, कही दिन गाळे
    जन बहानु करे नव सरे, अर्थ को काले।
    झंपलाववाथी सिद्धि जोई वळ लागे।
    या होम॰; सहु॰ च॰; या होम॰
    साहसे कोलंबस गयो, नवी दुनियामां,
    साहसे नेपोल्यन भिड्यो, युरोप आखामां;
    साहसे ल्युथर ते थयो, पोपनी सामां
    साहसे स्काटे देवु रे, वायुं जोता मां;
    साहसे सिकन्दर नाम अमरसहु जाणे।
    या होम॰; सहु॰ च॰; या होम॰

  3. नर्मदाशंकर।