पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/५४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०६
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

जनताका तेज प्रकट हुआ है। प्रतिष्ठाकी रक्षा करनेमें भी निःसन्देह विचार करना होता है। कोई तुच्छ अहंकारी मनुष्य ऐसी प्रतिष्ठा प्राप्त करनेका विचार करे जो उसे शोभा नहीं देती तो हम उसे छिछोरा कहकर टाल देंगे। माननीय अमीरने स्वाभिमान व्यक्त करनेका वही उपयुक्त समय समझा। लेडी मिटोके मीना बाजार जैसे अवसरपर उन्होंने लेडी मिटोको अपनी पदवीका भान कराया। उसका अर्थ यह हुआ कि वह बात सारी दुनियाको मालूम हो गई। उस लड़कीने तो अनजाने में ही 'महाविभव' लिखा था। किन्तु अब कोई मनुष्य अथवा प्रजा जान या अनजानमें उनका पद नहीं गिरा सकती।

इसी प्रकार ट्रान्सवालमें भारतीय समाजके सामने अपनी प्रतिष्ठाका प्रश्न आ खड़ा हुआ है। भारतीय समाजने आजतक जितना कष्ट सहा है, यदि आज वह बहादुरी बताये, तो वह सारा कष्ट उठाना विवेक और विनयस्वरूप माना जायेगा। किन्तु यदि इस समय वह कानूनके सामने झुक गया तो उसका वह कष्ट उठाना विवेकपूर्ण कार्य न होकर हीनता, तुच्छता, कायरता कहलायेगा। प्रतिष्ठाकी रक्षा करनेका हर मनुष्य और हर प्रजाको मौका मिलता है और वैसा ही मौका ट्रान्सवालके भारतीयोंको मिला है। सभी गोरे दाँतों तले अंगुली दबा रहे हैं। और सोच रहे हैं कि क्या भारतीयोंमें जेल जाने जितनी बहादुरी है? हम भारतीय समाजसे बार-बार प्रार्थना करते हैं कि तेरह हजार भारतीय एक स्वरसे 'हाँ, हाँ और हाँ' कहकर गुंजा दें। डरपोक तो सौ बार मरता है, परन्तु शूर एक ही बार मरता है। भारतमें प्लेगसे छः सप्ताह में ४,५१,८९२ भारतीयोंके मरनेकी तारसे सूचना आई है। तड़प-तड़प कर ऐसी मौत मरनेकी अपेक्षा यदि उतने ही लोगोंको देश हितमें मरना पड़े तो उससे क्या हुआ? उतने ही भारतीय यदि देशके लिए मरने को तैयार हो जायें तो भारत क्या नहीं कर सकता? लेकिन हमें ट्रान्सवालमें यह दशा तो किसी भी हालत में नहीं भोगनी है। जरा-सा संकट सहन करके जेल जाने की हिम्मत-भर करनी है। उसमें कौन भारतीय पीछे हटेगा?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-५-१९०७
 

४८०. एस्टकोर्टमें मताधिकारकी लड़ाई

एस्टकोर्टके भारतीयोंने नगरपालिकामें मताधिकारकी माँग की तो न्यायाधीशने उसको यह कहकर खारिज कर दिया कि नगरपालिकाके नये विधेयकके अन्तर्गत जिस भारतीयको राजकीय मताधिकार न हो, उसे नगरपालिकाका अधिकार भी मिल नहीं सकता। यह फैसला एकदम बेकायदा है। नगरपालिकाका विधेयक अभी पास नहीं हुआ। उसके खिलाफ अभी हमारी लड़ाई जारी है। किन्तु इससे इतना स्पष्ट है कि एस्टकोर्टके न्यायाधीश महोदय इस समाचारपत्रको, यद्यपि यह उन्हें निःशुल्क मिलता है, पढ़ते नहीं। अन्यथा, जिस विधेयकको बड़ी सरकारने अभी मंजूर नहीं किया, उसके अनुसार बेढंगा फैसला न देते। अब एस्टकोर्टके भारतीयोंके लिए अपील करना बिलकुल आवश्यक है।

इस विषयपर विचार करते हुए हमें यह बता देना चाहिए कि एस्टकोर्टके भारतीयोंको नेटाल भारतीय कांग्रेसकी सम्मतिके बिना उपर्युक्त कदम नहीं उठाना चाहिए था। यह समय ऐसा नहीं है कि भारतीय समाजका कोई भी अंग स्वतन्त्र रूपसे चल सके। नेटालमें