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४७९. ट्रान्सवालकी लड़ाई

हे भाई धोखा क्यों खाते हो? बेइज्जतीका जीवन बिताने में तो बड़ी नामर्दी है। इज्जत खोनेसे तो मरना अच्छा है। मरनेमें एक ही बार दुःख है, किन्तु इज्जत खोने में हमेशाका दुःख है। इसमें सभी लोग अँगुली दिखाते रहेंगे। इसलिए उत्तम नर यही चाहते हैं कि इज्जतके साथ जल्दी मरें। हम लम्बे समय तक जीवन चाहें तो जी लें, किन्तु अधम कानूनके कारण हमें बेइज्जतीका जीवन बिताना पड़ता है। गया हुआ धन तो वापस आ सकता है, किन्तु गया हुआ मान नहीं आ सकता; और मानके चले जानेपर तो तीनों ताप और भी ज्यादा दुःख देते हैं।"[१]

हमारे पास आनेवाले पत्रोंसे मालूम होता है कि फिलहाल ट्रान्सवालमें भारतीय समाजको नये कानूनके सिवा और कोई बात नहीं सूझती। यह बहुत ही खुशीकी बात है। इस वातावरण के अनुरूप हम भी उसी विचारको आगे बढ़ायेंगे। पिछले सप्ताह गुजरातके वीर रस के महाकविका एक गीत दिया गया था।[२] उन्हींकी वीर रसपूर्ण दूसरी कविता हमने ऊपर दी है। कविने स्पष्ट दिखा दिया है कि ताने सुनना हीनता है। जैसे, धन वगैरह नष्ट हो जानेपर भी प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु गई हुई प्रतिष्ठा वापस नहीं आती। और कवि कहता है कि इज्जत जानेपर तीन प्रकारके ताप पैदा होते हैं। यानी तन-मन-धन तीनोंके कष्ट एक साथ होते हैं।

इज्जत किस प्रकार प्राप्त की जाती है या रखी जाती है, इसका उदाहरण माननीय अमीर हबीबुल्लाने पेश किया है। वे लेडी मिटोके साथ मीना बाजारमें गये थे। वहाँ उन्होंने कुछ सामान खरीदा। बेचनेवाली लड़की स्वयं अमीरवर्गकी थी। उसने नकद पुर्जा बनाते समय 'महाविभव अमीर' (हिज हायनेस अमीर) लिखा। माननीय अमीरने वह नकद पुर्जा उस लड़कीको वापस दिया और कहा कि उसमें गलती है। लड़की बेचारी बड़ी हैरान हुई। उसने जोड़की जाँच की और विनयपूर्वक कहा कि इस नकद पुर्जेंमें गलती नहीं मालूम होती। अमीरने सिर हिलाकर फिर वह नकद पुर्जा उसके हाथमें दे दिया। लड़की घबड़ाकर फिर जाँचने लगी और जब उसे गलती न दिखाई दी तो कहने लगी इसमें क्या गलती है, कृपया आप ही बतला दें तो अच्छा हो। इसपर अमीरने अपने अर्दलीकी मारफत सूचित किया कि अमीर अब सिर्फ 'महाविभव' नहीं 'महामहिम' (हिज मैजेस्टी) हैं।

यह उदाहरण बहुत ही समझने योग्य है। अमीर यही व्यक्त करना चाहते हैं कि उन्हें अपनी प्रतिष्ठाका भान हो गया है और उसपर से हम कह सकते हैं कि उस दिनसे अफगान

  1. इस स्थानपर गांधीजीने निम्नलिखित गुजराती गीत उद्धृत किया है :

    झांसा शा खावा भाई, हिणपण मोटी नामरदाई।
    मान भंगथी मरवु सारुं एक वार दुःख मरवे;
    मान भंगवी नित्य-नित्य दुःख आंगळी करशे सर्वे।
    मेळवी जसने मरतुं व्हेलुं उत्तम नर ए च्छाये;
    अधम कायदो वणुं जिवीने अपजस मां रीवाये।
    गयुं धन ते पाहुं आवे गयुं मान ना आवे;
    गयुं मान के वणे तापो दुःखदा झाझा लावे।

  2. श्री नर्मदाशंकरका; देखिए "ट्रान्सवालकी लड़ाई", पृष्ठ ४९३-९४।