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४८२. जोहानिसबर्गको चिट्ठी
नया कानून

कई प्रश्नोंके उत्तर पिछले सप्ताह दे चुका हूँ।[१] लेकिन अभी और भी प्रश्न आये हैं। बहुतेरोंके उत्तरोंका समावेश पहले उत्तरोंमें हो गया है। फिर भी जो प्रश्न आये हैं उनके उत्तर देता हूँ। जिन पाठकोंको पहले उत्तरोंसे ठीक तरहसे समझमें आ गया होगा वे पुनरावृत्तिका खयाल न करें। मेरी सलाह है कि पाठक पिछला अंक सँभाल कर रखें।

क्या गांधी बिना शुल्कके बचाव करेंगे?

इस विषय में पूछताछ की गई है, इसलिए यहाँ और भी ज्यादा खुलासा करता हूँ। नये कानूनके अन्तर्गत यदि किसीपर मुकदमा चलाया जायेगा और उस व्यक्तिका अनुमतिपत्र सच्चा होगा या और किसी तरहसे उस व्यक्तिको रहनेका हक होगा तो उसका बचाव श्री गांधी मुफ्त करेंगे। यदि वह मुकदमा दूसरे गाँवका होगा तो वहाँ जानेका किराया संघ देगा। किन्तु जिस गाँवने ब्रिटिश भारतीय संघको बिलकुल पैसे न दिये हों और उस गाँव में बचावके लिए जाना पड़े तो उस गाँव से संघ चन्देका पैसा माँगेगा। बचाव में दोनों बातोंका समावेश होता है—अनुमतिपत्रका और नया अनुमतिपत्र न लेनेपर परवाना न मिलनेका।[२] यानी जिस व्यक्तिके पास परवाना न हो और उसे पकड़ा जाये तो उसका बचाव मुफ्त नहीं किया जायेगा। किन्तु जिस व्यक्तिको नया अनुमतिपत्र न लेनेके कारण परवाना न मिले उसका बचाव मुफ्त होगा। बचावका नतीजा यह होगा कि उस व्यक्तिको आखिर जेल जाना पड़ेगा। जो जेल न जाना चाहते हों उनका बचाव निःशुल्क या सशुल्क श्री गांधी नहीं करेंगे। बचाव जिस प्रकार होगा वह 'इंडियन ओपिनियन' के पिछले अंकमें देख लिया जाये।[३] अभी इतना सुनने में आया है कि लोगोंके अनुमतिपत्र जाँचे जा रहे हैं। यदि यह बात सच हो तो वह जाँच नये कानूनके अन्तर्गत नहीं हो रही है और इसलिए यदि आजकी जाँचमें कोई पकड़ा जाये तो उसका ऊपर लिखे अनुसार बचाव नहीं हो सकेगा। मुकदमा नये कानून के अन्तर्गत होना चाहिए, यह याद रखना है।

डेलागोआ-बे जानेवाले क्या करें?

जो भारतीय डेलागोआ-बे जाते हैं, उन्हें पुर्तगालके वाणिज्य दूतका पास लेना पड़ता है। और बहुत बार अनुमतिपत्र कार्यालयके भी चक्कर काटने पड़ते हैं। तब यह प्रश्न खड़ा हुआ है कि अनुमतिपत्र कार्यालयकी मदद ली जाये या नहीं। इतना तो साफ है कि ऐसे व्यक्तिको भी अनुमतिपत्र कार्यालयकी मदद नहीं लेनी चाहिए। किन्तु उसे डेलागोआ-वे जानेसे कोई रोक नहीं सकता। यदि पोर्तुगीज सरकार रोके तो ऐसे व्यक्तिको डर्बन होकर जाना चाहिए। किन्तु अनुमतिपत्र कार्यालयमें न जाना चाहिए। फिर भी इस मामले में पूछताछ हो रही है। विशेष

  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४९८-५०३।
  2. परवाना नया करवानेसे पहले व्यापारीको स्वभावतः अनुमतिपत्र लेना पड़ता था।
  3. देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ४९८-५०३।