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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

जानकारी मिलने पर बादमें लिखूँगा। इस बीच इतना तो निःसन्देह है कि अनुमतिपत्र कार्यालयमें तो किसी भी हालत में जाना ही नहीं है।

डेलागोआ-बेसे आनेके लिए क्या किया जाये?

हमें खबर मिली है कि डेलागोआ बेमें रेलवेका टिकट मिलने के पहले भारतीयको ब्रिटिश वाणिज्य दूतके पासकी जरूरत होती है। मैं मानता हूँ कि यह बात गैरकानूनी है। इसका उपाय डेलागोआ बेके भारतीय आसानीसे कर सकते हैं। लेकिन जो बात डर्बनपर लागू होती है वह डेलागोआ बेपर भी लागू होती है। इसलिए नया अनुमतिपत्र तो अभी किसीको नहीं लेना है। पुराने अनुमतिपत्रवालोंमें जेल जानेकी हिम्मत हो तभी आयें, नहीं तो अभी तत्काल ट्रान्सवालमें न आना ही उत्तम है।

ट्रान्सवाल छोड़ा जाये या नहीं?

एक व्यक्तिने यह प्रश्न किया है कि यदि कोई भारतीय आज ट्रान्सवाल छोड़े तो फिर, यानी जून महीने में आ सकेगा या नहीं। नये कानूनके अनुसार वैसे व्यक्तिके लिए नया अनुमतिपत्र लेनेका बन्धन है। यदि वह नहीं लेगा तो उसे जेल जाना होगा। यानी जिस भारतीयने जेलका डर निकाल दिया है वह बेधड़क आ सकता है। डरपोकोंका चले जाना ही अच्छा है, और बहादुरोंके लिए चले जाने और आनेमें डरने जैसी कोई बात है ही नहीं।

दूकानें कब बन्द की जायें?

इस प्रश्नका कानूनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। फिर भी मखाडोडॉपैसे एक पत्र आया है कि वहाँकी पुलिस भारतीय व्यापारियोंको जल्दी दूकान बन्द करने को कहती है। यदि पुलिसने इस प्रकार कहा हो तो वह गैरकानूनी है। लेकिन मेरी सभी भारतीय व्यापारियोंको सलाह है कि जिस समय सब जगह गोरे दुकानें बन्द करते हैं उसी समय उन्हें भी बन्द करना चाहिए। हमें कानूनी दबावकी राह देखनेकी जरूरत नहीं, यद्यपि इसमें शक नहीं कि वैसा कानून थोड़े ही महीनोंमें बननेवाला है। नगरपालिकाको वैसा कानून बनानेका अधिकार दिया जा चुका है। हमें कोई काम लाचारीसे करना पड़े, उसके बजाय यदि उसे हम स्वेच्छापूर्वक करें तो उसमें एक खूबी है।

मुद्दती अनुमतिपत्रोंका क्या किया जाय

एक पत्र-लेखकने यह और इससे पैदा होनेवाले कुछ दूसरे प्रश्न पूछे हैं। मुझे मालूम है कि कुछ मुद्दती अनुमतिपत्र जूनके अन्तमें समाप्त हो रहे हैं। मेरी सलाह है मुद्दती अनुमति-पत्रवाले व्यक्ति मुद्दत बीतने के पहले ट्रान्सवाल छोड़ दें। हमारी लड़ाईमें शुद्ध सत्य है और वह हमें अन्ततक दिखाना जरूरी है। जो ट्रान्सवालमें साधिकार रह रहे हैं उन्हें हठपूर्वक अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा करनी चाहिए। इस उत्तरमें देखता हूँ कि दो अपवाद हो सकते हैं : एक मसजिद के इमाम और दूसरे हिन्दुओंके शास्त्री। ये दोनों धर्म शिक्षाके लिए आये हैं। यदि नया कानून लागू न होता तो उन्हें ज्यादा मुद्दतका अनुमतिपत्र पाने में कोई कठिनाई नहीं होती। अब उनसे नया अनुमतिपत्र तो लिया नहीं जा सकता। यानी वे जेल में जानेके इरादे से सरकारको योग्य खबर देकर रह सकते हैं। वे कह सकते हैं कि वे न व्यापार करते हैं, न किसीकी कमाई में हिस्सा लेते हैं। उनका काम अपने लोगोंको धर्म-शिक्षा देना है। इसलिए वे बाहर नहीं जा सकते। यह दलील उन खानगी लोगोंपर नहीं लागू होती जो व्यापारके लिए