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३०. रायटरको भेंट

[अक्तूबर २७, १९०६][१]

रायटरके प्रतिनिधिसे बातचीत करते हुए श्री गांधीने कहा :

हम नये ट्रान्सवाल एशियाई अध्यादेशका विरोध करने आये हैं जो ब्रिटिश भारतीयों के लिए अपमानजनक है; क्योंकि इससे उनमें से प्रत्येकको एक पास रखना पड़ेगा, जिसपर अँगूठोंके निशान और शिनाख्त के अन्य चिह्न अंकित रहेंगे। नये अध्यादेशका लक्ष्य ट्रान्सवालमें अनधिकृत भारतीयोंके प्रवेशको रोकना है। हम साम्राज्यीय सरकारको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि यह उद्देश्य वर्तमान अनुमतिपत्र अध्यादेश[२] द्वारा, जिसे बड़ी सख्ती के साथ लागू किया जाता है, पूरी तरह सम्पन्न हो जाता है।

[अंग्रेजीसे]
टाइम्स, २९-१०-१९०६

३१. पत्र: हाजी वजीर अलीको

होटल सेसिल
लन्दन
अक्तूबर २७, १९०६

प्रिय श्री अली,

जॉर्ज आपसे और डॉ० ओल्डफील्डसे मिलनेके बाद मुझसे मिले हैं। यह खुशीको बात है कि जिसे मैंने रोगका फिरसे हमला समझा था, वह आखिरकार दुःखके रूपमें सुख निकला। मुझे इस बातसे भी खुशी हुई कि जब वे आपसे मिले, आप स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। जब मैं इस बातपर विचार करता हूँ तो निश्चय ही मुझे ऐसा लगता है कि जॉर्ज न होते तो हमारा यहाँका मुकाम अधूरा रह जाता; कौन हम दोनोंको एक दूसरेके सम्पर्क में रखता? आपने सभा करनेके बारेमें जो विचार सुझाया वह मेरे मनमें सर्वोपरि रहा है। जैसा कि आप अन्दाज लगा सकते हैं, मैंने तनिक भी सुस्ती नहीं की है। मैं यहाँ-वहाँ लोगोंसे मिलता रहा हूँ। यह सुझाव पेश किया जा चुका है कि ब्रिटिश लोकसभा-भवनमें एक सभा[३] हो और हम दोनों उसमें भाषण दें। विपरीत परिस्थितियाँ न आयें तो मेरी बड़ी इच्छा है कि आप इन सभाओंमें उपस्थित रहें। आपके बिना मैं इन सभाओंमें बोलने की बात नहीं सोच पाता। मैं आपकी उपस्थिति और भाषणकी कीमत अच्छी तरह जानता हूँ। अगले हफ्ते के

  1. देखिए अगला शीर्षक और "पत्र: जी० जे० ऐडमको", पृष्ठ १८-१९।
  2. शान्ति-रक्षा अध्यादेश।
  3. देखिए "लोकसभा-भवनकी बैठक", पृष्ठ १११-१२।

६-३