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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जेलसे डरेंगे या जेलको महल बनाकर खुशी-खुशी वहाँ जायेंगे ? ऐसा होनेपर भारतके बन्धन अपने आप टूट जायेंगे।

हमने अर्जियाँ दीं, भाषण दिये; और भी अर्जियाँ भेजेंगे, और भी भाषण देंगे। किन्तु हमारी विजय तभी होगी जब हममें ऐसा बल होगा। लोगोंको भाषण या पर्चेबाजीपर बहुत विश्वास नहीं रहा, वह तो सब कर सकते हैं। उसमें कोई बहादुरी नहीं प्रकट होती। क्योंकि कथनीसे करनी भली होती है। इसके बिना सब झूठा है। उसका डर किसीको नहीं है। इसलिए सर्वस्व बलिदानका संकल्प करके निकल पड़ें। यही एक रास्ता है। इसमें जरा भी शक नहीं। अभी हमें बहुत कुछ करना बाकी है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २४-११-१९०६

२९. लॉर्ड एलगिनके नाम लिखे पत्रका मसविदा[१]

१९६, क्रॉमवेल रोड
लन्दन, एस० डब्ल्यू०
अक्तूबर २७, १९०६

सेवामें
परममाननीय अर्ल ऑफ एलगिन
महामहिमके मुख्य उपनिवेश मन्त्री
लन्दन
प्रिय लॉर्ड एलगिन,

सर जॉर्ज बर्डवुड, श्री नौरोजी, श्री हेनरी कॉटन और श्री अमीर अली तथा मेरे सहित अन्य कुछ लोगोंसे ट्रान्सवालसे आया हुआ भारतीय शिष्टमण्डल मिला है। चूंकि हममें से अधिकांश लोग दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीयोंसे सम्बद्ध प्रश्नसे बराबर दिलचस्पी लेते रहे हैं इसलिए भारतीय प्रतिनिधियोंने हमसे शिष्टमण्डलका नेतृत्व करनेको कहा है।

जिन लोगोंने शिष्टमण्डलमें भाग लेना स्वीकार कर लिया है उन्होंने मुझसे इसका प्रवक्ता बननेको कहा है; और चूंकि मैंने प्रश्नका अध्ययन अन्य लोगोंकी अपेक्षा, कदाचित्, अधिक विस्तारसे किया है इसलिए मैंने यह दायित्व स्वीकार कर लिया है।

अतएव, मैं समितिकी ओरसे अनुरोध करता हूँ कि आप समिति सहित ट्रान्सवालसे आये हुए प्रतिनिधियोंसे मिलने के लिए कोई समय निश्चित करने की कृपा करें।

आपका सच्चा,

बिना हस्ताक्षरकी टाइप की हुई अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४१०) से।

  1. पत्रका यह मसविदा गांधीजीके कागजातमें पाया गया। इसपर सर मंचरजी भावनगरीका पता दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि पत्र उनके हस्ताक्षरसे भेजा जानेको था। परन्तु पत्र भेजा नहीं गया क्योंकि सर लेपेल ग्रिफिनने अन्ततः शिष्टमण्डलका नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया। "तार: सर मंचरजी मे० भावनगरीको", पृष्ठ ११ भी देखिए।