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३३. पत्र: जे० सी० मुकर्जीको

[होटल सेसिल
लन्दन]
अक्तूबर २७, १९०६

प्रिय श्री मुकर्जी,

मैं आपसे एक बात कहना भूल गया। वह बात मुझे 'इंडियन ओपिनियन' के विचारसे 'टाइम्स' देखते समय याद आई। देखता हूँ, 'टाइम्स' में हमेशा 'इंडियन ओपिनियन' के लिए भेजने लायक काफी सामग्री रहती है। आप अपने संवाद भले ही शुक्रवारकी रातको भेजा करें, किन्तु मेरा खयाल है कि 'टाइम्स' से ताजी खबरें और संसदीय विवरण शनिवारको भेजें और यदि जरूरत हो तो अन्तिम क्षण तक भी बड़े डाकखानेसे रवाना करें। मेरी रायमें इसी तरह आप अपने संवाद प्रभावशाली और आ-तिथि बना सकते हैं। आजकल संसदका सत्र चल रहा है। मैं सोचता हूँ, इस समय भारतीय और तत्सम्बन्धी अन्य प्रश्नों-- जैसे वतनी, चीनी आदि --पर आप 'टाइम्स' से बहुत मसाला भेज सकते हैं। स्पष्ट ही 'टाइम्स' बहुत परिपूर्ण विवरण देता है। तब आप 'इंडिया' से आगे और दक्षिण आफ्रिकी पत्रोंके साथ रह सकेंगे जो, जैसा कि मैंने आपसे कहा है, पूर्णतः आ-तिथि रहते हैं। मैं यह सुझाव, भूल न जाऊँ इसलिए, लिखे डाल रहा हूँ।

आपका सच्चा,

श्री जे० सी० मुकर्जी
६५, क्रॉमवेल ऐवेन्यू
हाइगेट, एन०

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४१३) से।