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४६. पत्र: श्रीमती स्पेंसर वाल्टनको

[होटल सेसिल
लन्दन]
अक्तूबर ३०, १९०६

प्रिय श्रीमती स्पेंसर वाल्टन,

श्री स्पेंसर वाल्टनके देहावसानका समाचार सुनकर मैं अत्यधिक दुःखी हुआ हूँ। आपकी इससे जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति तो की ही नहीं जा सकती, किन्तु मुझे इसमें सन्देह नहीं है कि उनकी मृत्युके कारण अन्य अनेक लोग भी अपनेको दीन अनुभव कर रहे हैं। मैं यहाँ अपने मुकामकी अवधिमें आपसे आकर मिल सकनेकी आशा करता था, किन्तु देखता हूँ, मैं जिन तीन-चार हफ्तों तक यहाँ हूँ उनमें इतना अधिक व्यस्त रहूँगा कि कदाचित् आकर मिलना न हो सके। फिर भी यदि आप मुझे दो पंक्तियाँ लिखकर सूचित कर सकें कि आप साधारणतः किस समय घर रहती हैं तो कृपा होगी।

आपका सच्चा,

श्रीमती स्पेंसर वाल्टन
एंड्रयू हाउस
टनब्रिज
केंट

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४४२६) से।

४७. लॉर्ड एलगिनके नाम लिखे पत्रका मसविदा[१]

२२, कैनिंगटन रोड
[लन्दन]
अक्तूबर ३०,१९०६

सेवामें
परममाननीय अर्ल ऑफ एलगिन
महामहिमके मुख्य उपनिवेश मन्त्री
लन्दन
महोदय,

ट्रान्सवालकी विधान परिषद द्वारा पास किये गये १९०६ के फ्रीडडॉर्प बाड़ा अध्यादेशके बारेमें ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघके एक प्रार्थनापत्रकी[२] प्रति सेवामें प्रेषित कर रहा हूँ। ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघके स्थानापन्न अवैतनिक मन्त्रीसे[३] मुझे यह सूचना मिली है।

  1. सम्भवतः यह पत्र गांधीजीने लिखा था। इससे पहले लिखे गये पत्रके मसविदेपर गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मन्त्रीके नाम कुछ हिदायतें और चन्द संशोधन भी हैं। यह भी जाहिर होता है कि इसपर दादाभाई नौरोजी के हस्ताक्षर होनेको थे।
  2. देखिए "प्रार्थनापत्र: लॉर्ड एलगिनको", खण्ड ५, पृष्ठ ४७६-७८।
  3. हेनरी एस० एल० पोलक।