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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ट्रान्सवालकी भारतीय जनसंख्या

५. ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी वर्तमान जनसंख्या अनुमतिपत्रके लेखेके अनुसार लगभग १३,००० है और जनगणनाके अनुसार १०,००० से ऊपर है। इसके मुकाबिलेमें श्वेत जनसंख्या २८०,००० से ऊपर है। ट्रान्सवालके भारतीय दूकानदार, व्यापारी, उनके सहायक, फेरीवाले और घरेलू नौकर हैं। इनमें अधिकांश लोग दुकानदार या फेरीवाले हैं।

१८८५ का कानून ३

६. १८८६ में संशोधित १८८५ का कानून ३, एशियाइयोंपर लागू होता है जिनमें कुली, मलायी, अरब और तुर्की साम्राज्यके मुसलमान प्रजाजन शामिल हैं, और जैसा कि ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयने इसकी व्याख्या की है:

(१) यह उन लोगोंका निवास, जो इसके अन्तर्गत आते हैं, खास तौरसे पृथक्की गई बस्तियों या सड़कों तक ही सीमित करता है। इस धाराके भंग करनेपर कानूनमें किसी दण्डकी व्यवस्था नहीं है और इसलिए परिणामको दृष्टिसे वह नगण्य है।

(२) उन्हें नागरिक अधिकारोंसे वंचित करता है।

(३) उन्हें सिवाय उन बस्तियों या सड़कोंके, जिनका पहले उल्लेख किया गया है, अचल सम्पत्तिके स्वामित्वके अधिकारसे वंचित करता है।

(४) और जो ट्रान्सवालमें व्यापार या अन्य कारणोंसे बसना चाहें उनके लिए यह ३ पौंड शुल्क देना और आगमनके बाद आठ दिनके अन्दर पंजीयन कराना आवश्यक ठहराता है। (इस कानूनकी न्यायालयोंने जो व्याख्या की है, उनके अनुसार ऐसे बसनेवालोंके बच्चों, स्त्रियों और उनका, जो व्यापारी नहीं हैं, पंजीयन आवश्यक नहीं है।)

७. उपर्युक्त कानून प्रवासपर रोक नहीं लगाता परन्तु इसका उद्देश्य व्यापारियोंको ३ पौंड तक दण्डित करना है। बोअर शासन-कालमें यह ब्रिटिश सरकारके अभिवेदनोंका कारण बना था और इसलिए तब यह कभी कड़ाईके साथ लागू नहीं किया गया। इसके प्रशासन के लिए राज्यका कोई अलग विभाग नहीं था और पंजीयनका अर्थ केवल प्रदाताको ३ पौंडकी रसीद दे देना था।

ब्रिटिश शासनके अन्तर्गत

८. ब्रिटिश शासन प्रारम्भ होनेके बाद, वादों और आशाओंके विरुद्ध, पृथक् एशियाई कार्यालय स्थापित किये गये। शान्ति-रक्षा अध्यादेश स्पष्टतः राज्यको खतरनाक लोगोंसे बचाने के उद्देश्यसे बनाया गया था, उसका दुरुपयोग भारतीय प्रवासको नियन्त्रित करने के लिए किया गया। इसके अन्तर्गत ब्रिटिश भारतीयोंको केवल सम्बन्धित अधिकारियोंकी सिफारिशपर अनुमतिपत्र दिये गये जिससे दुरुपयोग और भ्रष्टाचारकी बहुत वृद्धि हुई। इन अधिकारियोंने अन्धाधुन्ध घूस लेना शुरू कर दिया और भारतीय शरणार्थियोंको, जिन्हें तत्काल ट्रान्सवाल वापस आनेका अधिकार था, ऐसा करने में कठिनाई होने लगी, और उन्हें प्रायः ३० पौंड तक देनेको विवश होना पड़ा। ब्रिटिश भारतीय संघने इस ओर स्थानीय सरकारका व्यान एकाधिक बार आकृष्ट किया। अन्तमें इसका परिणाम यह हुआ कि इस अपराध में दो अधिकारियोंपर मुकदमा