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आवेदनपत्र: लॉर्ड एलगिनको

चलाया गया, और यद्यपि सबूतके अभावमें पंचोंने उन्हें बरी कर दिया तथापि वे सरकारी नौकरीसे बरखास्त कर दिये गये। तब एशियाई कार्यालय बन्द कर दिये गये और अनुमतिपत्रोंकी मंजूरीका काम, जैसा कि उचित ही था, अनुमतिपत्रोंके मुख्य सचिवको[१] हस्तान्तरित कर दिया गया। यद्यपि इस शासनमें ब्रिटिश भारतीयोंको अनुमतिपत्र केवल स्वल्प और सो भी काफी विलम्ब और गहरी छानबीन के बाद दिये जाते थे तथापि कोई भ्रष्टाचार नहीं था। इसी बीच उपनिवेश विभागमें एशियाई संरक्षकके नामसे एक अधिकारी नियुक्त किया गया।

भारतीयोंका पंजीयन

९. जबकि अनुमतिपत्र विभाग अनुमतिपत्रोंके मुख्य सचिवके अधीन था, लॉर्ड मिलनरने १८८५ के कानून ३ को कड़ाईके साथ लागू करना उचित समझा और अनुमतिपत्र सचिवको एशियाई पंजीयक नियुक्त किया। ब्रिटिश भारतीय संघने इस कदमका नम्रतापूर्वक विरोध किया[२]। परन्तु, यद्यपि ब्रिटिश भारतीयोंके लिए, जिन्होंने बोअर सरकारको ३ पौंड चुका दिये थे, पुनः पंजीयन कराना आवश्यक नहीं था तथापि लॉर्ड मिलनरकी आग्रहपूर्ण सम्मतिसे उन्होंने अपना पुनः पंजीयन करवा लिया। इन प्रमाणपत्रोंमें प्राप्तकर्ताओं और उनकी पत्नियोंके नाम, बच्चोंकी संख्या, प्राप्तकर्ताओंकी आयु, उनकी शिनाख्तके चिह्न और अँगूठोंके निशान हैं।

१०. लॉर्ड मिलनरने यह सलाह देते समय निम्नलिखित विश्वास दिलाया था:

मेरे खयालमें पंजीयन उनका रक्षक है। इस पंजीवनके साथ ३ पौंडका कर लगा हुआ है। यह केवल इसी बार माँगा जा रहा है। पिछली हुकूमतको जिन्होंने कर दे दिया है वे केवल इसका प्रमाण पेश कर दें। फिर उन्हें दूसरी बार यह कर नहीं देना होगाएक बार उनका नाम रजिस्टरपर चढ़ जानेके बाद उसे दूसरी बार दर्ज करानेकी अथवा नया अनुमतिपत्र लेने की जरूरत न होगी। इस पंजीयनसे आपको यहाँ रहने और कहीं भी जाने और आनेका अधिकार मिल जाता है।[३]

११. आजकल स्त्रियों और बच्चोंको छोड़कर ट्रान्सवालके लगभग प्रत्येक भारतीयके पास अनुमतिपत्र होता है जिसमें उसका नाम, जन्मस्थान, पेशा, अन्तिम पता, उसका हस्ताक्षर और सामान्यतः उसके अँगूठेका निशान दर्ज रहता है, और सब मामलोंमें नहीं तो आधिकांश पंजीयन प्रमाणपत्र ऊपर लिखे अनुसार होते हैं। इसलिए, यदि ट्रान्सवालमें ऐसे भारतीय हों जिनके पास अनुमतिपत्र नहीं हैं और जो शान्ति-रक्षा अध्यादेशकी छूटकी धाराके अन्तर्गत नहीं आते तो

वे अनधिकृत निवासी हैं और उस अध्यादेशके अन्तर्गत निष्कासित किये जा सकते हैं। जो अनुमतिपत्र पेश नहीं कर सकते, यह सिद्ध करनेकी जिम्मेदारी उनकी है कि वे माफीकी धाराओंके अन्तर्गत आते हैं। यदि वे निष्कासन सम्बन्धी आज्ञा नहीं मानते तो उन्हें कैदकी सजा हो सकती है। इसके अतिरिक्त शान्ति-रक्षा अध्यादेश जाली प्रार्थनापत्रोंसे अनुमतिपत्र प्राप्त करने, या इस प्रकार अनुमतिपत्र प्राप्त करनेमें किसीकी सहायता करने या धोखा देकर प्राप्त किये हुए अनुमतिपत्रके आधारपर प्रवेश करनेको दण्डनीय अपराध ठहराता है।

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ १५२।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३२४-३१।
  3. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३२८।