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सात


सात की गई भारतीयोंकी विराट सार्वजनिक सभाओंमें भी। जब संघर्ष पूरे जोरपर था तब भी उन्होंने आन्दोलनके अधिक प्रचलित तरीकोंको जारी रखा। उन्होंने दक्षिण आफ्रिका, भारत और इंग्लैण्डके प्रमुख लोगोंको पत्र लिखे। लन्दनमें दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति आवेदन-निवेदनकी और लोक-शिक्षणको प्रमुख साधन बनी रही। इस खण्डमें ऐसे पत्रोंके, जो उन्होंने गलतफहमी दूर करने, गलतबयानियोंका खण्डन करने और अपने कार्यके प्रति सहानुभूति जगानेका धैर्यपूर्ण, सावधानतापूर्ण और अथक प्रयत्न करते हुए लिखे, कई उदाहरण हैं। वर्षके अन्तमें वे यह लिख सके कि “गोरोंके सारे अखबार सरकारको बहुत फटकारते है और भारतीयोंकी जय बोलते हैं" (पृष्ठ ४४१)।

उन्होंने यह स्पष्ट देखा कि संघर्षके उद्देश्य और तरीकोंका महत्त्व स्थानीय या अस्थायीसे अधिक है; और वे जानते थे कि उनका महत्त्व सब स्थानोंके मनुष्योंके लिए है। "ट्रान्सवालके भारतीय एक बूंद खून गिराये बिना ही मानव-जातिको विस्मित कर देंगे" (पृष्ठ ११९) और ब्रिटिश राजनीतिज्ञताकी यह एक खरी कसौटी थी: साम्राज्यका हाथ सबल गोरोंसे निर्बल भारतीयोंकी रक्षा करेगा अथवा दुर्बलों और असहायोंको कुचलने में अत्याचारीके हाथोंको मजबूत करेगा? (पृष्ठ ८८)। किन्तु अब भी ब्रिटिश संस्थाओंमें गांधीजीका विश्वास डिगा नहीं था; उन्होंने लिखा: “मैंने जिन बातोंको इस साम्राज्यकी खूबी समझा है, उनके कारण मैं अपनेको उसका भक्त मानता हूँ। इसीलिए मैंने यह देखकर-चाहे मेरा देखना सही हो या गलत-कि एशियाई कानून संशोधन अधिनियममें साम्राज्यके लिए खतरेके बीज छिपे हए हैं, अपने देशवासियोंको किसी भी कीमतपर, अत्यन्त शान्तिपूर्ण और, कहूँ तो, शिष्ट ढंगसे, इस अधिनियमका विरोध करनेकी सलाह दी है" (पृष्ठ ४०५)।

किन्तु ट्रान्सवालकी सरकारने इन अपीलोंपर कोई कार्रवाई नहीं की। दिसम्बरमें, जिस दिन ट्रान्सवाल प्रवासी अधिनियमपर सम्राटकी स्वीकृति 'गजट' में प्रकाशित की गई, उसी दिन जनरल स्मट्सने गांधीजी और अन्य नेताओंपर मकदमे चलानेका निश्चय किया। गांधीजीने इस बातका यह मानकर स्वागत किया कि “वास्तवमें यही एक तरीका है जिससे एशियाई भावनाकी व्यापकता और असलियतकी परख हो सकती है" (पृष्ठ ४६५)।

न्यायालयमें चलाये गये वे मुकदमे, जिनमें अब गांधीजी अधिकांशतः अनाक्रामक प्रतिरोधियोंके बचावके लिए खड़े हुए, उनके धन्धे और सार्वजनिक जीवनकी एक नई अवस्थाके सूचक हैं। एक चतुर वकील होनेके कारण, वे विरोधी कानूनोंकी खुली चुनौतीका उपयोग लोकमत-शिक्षणके साधनके रूपमें कर सके। उन्होंने अपने मुवक्किलोंको परामर्श दिया कि वे अपनेको निर्दोष बतायें, ताकि अदालत उनके अपने मुखसे ही सुन सके कि उन्हें क्या कहना है (पृष्ठ ४६३)। इन मुकदमोंने उनके आन्दोलनका अबतक के सब प्रार्थनापत्रों और की अपेक्षा अधिक प्रचार किया। इनसे साम्राज्य सरकार जाग्रत होने और उन घटनाओंको देखनेके लिए बाध्य हो गई, जो विश्वके इतिहासमें सबसे अधिक सभ्य होनेका दावा करनेवाले साम्राज्यके नागरिकोंके साथ घटित हो रही थीं।