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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सरकार जान-बूझकर हमें अपमानित करना चाहती है। यदि भारतीय इस कानूनको सहन करनेके बजाय अपनी भौतिक सम्पत्तिको खोनेके लिए तैयार है तो क्या उनको दोष दिया जायेगा? समूचा गोरा ट्रान्सवाल हमारे विरुद्ध है तो ईश्वर हमारे साथ है।

आपका, आदि,
हाजी हबीब
मन्त्री,
ब्रिटिश भारतीय समिति, प्रिटोरिया

[अंग्रेजीसे] स्टार,
९-७-१९०७

६१. जोहानिसबर्गको चिट्ठी

सोमवार [जुलाई ८, १९०७]

धन्य प्रिटोरिया!

प्रिटोरियाने तो हद कर दी। वहाँपर जिन लोगोंसे शायद ही किसीको कोई हिम्मतकी आशा थी, उन लोगोंने भयानक दुःख उठाकर तथा अपना सब कुछ छोड़कर लोकसेवा शुरू की है और सभी, किस प्रकार लाज रहे, इसके सिवा कुछ नहीं सोचते।

स्वयंसेवकोंपर न्योछावर जाऊँ!

स्वयंसेवकों उर्फ धरनेदारों उर्फ चौकोदारों उर्फ देशसेवकोंने तो अपना नूर चमका दिया है। ट्रान्सवालके भारतीयोंके इतिहासमें उनका नाम अमर रहेगा। वे अपना सारा समय केवल धरना देने में बिताते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं:

सर्वश्री ए० एम० काछलिया, गौरीशंकर प्राणशंकर व्यास, गुलाम मुहम्मद, अब्दुल रशीद, कासिम सिद्ध, खशाल छीता, मेमन इब्राहीम नर, गोविन्द प्राग, हसैन बीबा, महम द वली, अर्देशर फरामजी, चाउल बेग, गुलाब रुद्र देसाई, मूसा सुलेमान और इब्राहीम नूर।

इतने देशभक्त बारी-बारीसे सारे दिन अनुमतिपत्र-कार्यालयके आसपास फिरते रहते हैं और जो कोई भारतीय कार्यालयके अन्दर जाता है उसे विनयपूर्वक समझाकर रोकते हैं। वे इस समय अपना कामधन्धा छोड़कर केवल देश-सेवापर तुले हुए हैं। चाहे जैसी आफत आये, उसकी उन्हें परवाह नहीं है। वे अपने कामके चाहे जैसे परिणाम झेलनेको तैयार हैं। जहाँ इतनी देशभक्ति हो वहाँ यदि अन्तमें जीत हो तो उसमें आश्चर्य कौन-सा?

इस बहादुरीका सबक

स्वयंसेवकोंके इस कार्यका अनुकरण ट्रान्सवालके प्रत्येक गाँवको करना चाहिए। आज प्रिटोरियामें जो-कुछ हो रहा है वह ट्रान्सवालके प्रत्येक गाँवमें हो सकता है। कुछ समयमें पंजीयनपत्रकी अर्जी देनेके लिए प्रत्येक गाँवमें अधिकारियोंकी नियुक्ति हो जायेगी। उस समय प्रिटोरियासे सबक लेकर हर गाँवके भारतीयोंको स्वयंसेवक खोजने होंगे। मेरी रायमें तो वे बाढ़ आनेके पहले ही बाँध बाँध लें और स्वयंसेवक तैयार कर लें। जिनके लिए सम्भव हो