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१६९. सविनय अवज्ञाका धर्म[१]

ऐसा लगता है कि संसदके दोनों सदनोंने जो यह विधेयक पास कर दिया है कि मृत पत्नीकी बहनसे विवाह करना वैध है, उससे संसदीय कानून द्वारा स्थापित गिरजों (एस्टैब्लिश्ड चर्च) के पादरी एक प्रकारके सत्याग्रहियोंमें परिणत हो जायेंगे। कैंटरबरीके सर्वोपरि पादरी (आर्क विशप) ने आज एक संदेश भेजा है जिसमें पादरियोंसे अनुरोध किया है कि यद्यपि इस प्रकारके सम्बन्ध देशके कानून द्वारा जायज करार दिये गये हैं, वे मृत पत्नीकी बहनसे विवाह न करायें।

"डेली प्रेस"

इस विवादमें पड़नेकी हमारी इच्छा नहीं है कि मृत पत्नीकी बहनसे शादी करना सही दिशामें सुधार है या नहीं। हमने उपर्युक्त समुद्री तार यह बतानेके लिए उद्धृत किया है कि सत्याग्रह खास परिस्थितियों में अपनी शिकायतें दूर करानेका एक सर्वमान्य उपाय है और कानूनपर चलनेवाले और शान्ति-परायण लोग अपनी अन्तरात्माका हनन किये बिना सिर्फ यही रास्ता अपना सकते हैं। वास्तवमें लगता तो यह है कि यदि उनमें कोई अन्तरात्मा है और वह किसी खास कानूनके खिलाफ बगावत करती है तो यह तरीका उन्हें अपनाना ही चाहिए। जवाबमें कहा जा सकता है कि ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों द्वारा किये गये और कैंटरबरीके आर्क विशप द्वारा सुझाये गये सत्याग्रहमें कोई समानता नहीं है। हमारा यहाँ मतभेद है और हम दावा करते हैं कि अगर कैंटरबरीके आर्क बिशपके लिए मृत पत्नीकी बहनके कष्ट-निवारणवाले कानूनकी अवहेलना करना वैध है तो ब्रिटिश भारतीयोंके लिए तो यह और भी अधिक वैध है कि वे एशियाई पंजीयन अधिनियमको मानने से इनकार करें। अगर ऐसे पादरियोंके लिए, जो शादी करानेसे इनकार करके कानूनको न मानें, इस कानूनमें कोई सजा नहीं है तो यह उनका दुहरा कर्तव्य है कि वे कानूनको मानें। लेकिन आर्क बिशप तो जान-बूझकर विपरीत सलाह देते हैं; क्योंकि वे एक ऊँचे कानूनकी ओर बढ़े हैं और वह है अन्तरात्माका कानून। सही या गलत, पर कृपामूर्ति आर्क बिशपका विश्वास है कि इस प्रकारकी शादियोंके लिए इंजीलमें कोई विधान नहीं है और संसदने ऐसा कानून बनाकर ईश्वरीय कानूनको भंग किया है। इस बातको बर्दाश्त करना पादरियोंके लिए अधर्म होगा। दूसरे शब्दोंमें, आर्क बिशपने थोरोकी इस बातको स्वीकार कर लिया है कि हमें प्रजा होनेसे पहले मनुष्य होना चाहिए और हमारी अन्तरात्माकी ऐसी कोई आज्ञा नहीं है कि हम किसी भी कानूनको, उसके पीछे चाहे जो ताकत या बहुमत हो, अन्धे होकर मान लें।

  1. इस विषयपर गुजराती में यह और आगेके लेख लिखने में गांधीजीने अमेरिकी दार्शनिक, प्रकृतिवादी तथा ग्रंथकार हेनरी डैविड थोरो (१८१७-६२) के निबन्ध सविनय अवज्ञाका धर्म (ऑन द डयूटी ऑफ सिविल डिस-ओबिडिएन्स) की सहायता ली थी। उक्त निबन्ध सर्वप्रथम १८४९ में 'नागरिक शासनका प्रतिरोध', (रेजिस्टैन्स टु सिविल गवर्नमेंट) शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था।