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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री मैकिंटायर भी उपस्थित थे। सभी हिन्दुओंको महाराज रामसुन्दर पण्डितजीने समझाया था कि आस्तिक हिन्दू तो एशियाई कानूनको कभी स्वीकार नहीं कर सकता। इस सभाको खत्रियों, बाबू तालेवन्तसिंह और खंडेरियाकी ओरसे भेटें दी गई थीं।

कुछ डरपोक भारतीय

कुछ डरपोक भारतीयोंकी ओरसे प्रिटोरिया के एक वकीलकी मारफत जनरल स्मट्सको एक पत्र[१] लिखा गया है। मालूम हुआ है कि यदि सरकार थोड़ा-सा भी आश्वासन दे दे तो वे लोग फिसलनेको तैयार हैं। मेरा कहना है कि ऐसे पत्रोंसे हमारी लड़ाई कमजोर होती है। किन्तु मैं यह नहीं मानता कि इससे अन्तमें नुकसान होगा। यदि भारतीय बड़ी संख्यामें अपनी टेकपर डटे रहे तो आखिर हमें विजय मिलनी ही चाहिए। मैं यह भी कहता हूँ कि इस तरहके डरपोक पत्रोंके कारण हमें ज्यादा हानि उठानी पड़ेगी। इसके अलावा, हमने जो तुच्छ मांग की है उससे प्रकट होता है कि हमें सच्ची लड़ाईका भान नहीं है। हमारी लड़ाई भारतीय समाजकी नाक बनाये रखने के लिए है, हमारे ईमानकी रक्षाके लिए है। यदि हम उसे रोटी कहें तो यह डरपोक पत्र उस रोटीके बदले रेत लेकर सन्तुष्ट होनेकी बात करता है। पुलिस सार्वजनिक तौरसे अनुमतिपत्र न देखे, या दस अँगुलियोंकी छापकी जगह सही करवाये तो इससे यह नहीं माना जायेगा कि हम जीत गये या हमारी प्रतिष्ठा रह गई। वह घृणित कानून तो रह हो जायेगा। इसका अर्थ केवल यही हुआ कि लोहेकी बेड़ीकी जगह किसी हलकी धातुकी बेड़ी पहनाई जायेगी। हमारी लड़ाई तो बेड़ी तोड़कर चूर-चूर कर देनेके लिए है।

मेरी अर्जी

अब उपर्युक्त पत्र तो गया। लेकिन उस पत्रको भेजनेवाले भाइयों और दूसरे भारतीयोंसे मेरी प्रार्थना है कि यदि आपको धीरज न हो, आपसे अपना पैसा न छूटता हो तो आपको मेहरबानी करके बिना अर्जी कानूनकी शरण चले जाना चाहिए। इससे आपके द्वारा समाजका कम नुकसान होगा और आप स्वयं कम डरपोक कहलायेंगे। यदि सभी भारतीयोंकी बुद्धि पलट जाये और सबके सब डर जायें तब भी मैं तो यही सलाह देनेवाला हूँ।

पत्रका असर कैसे दूर हो?

उपर्युक्त पत्रसे होनेवाला नुकसान कम या दूर कैसे हो, इसका उपाय खोजें। इस पत्र में कहा गया है कि ब्रिटिश भारतीय संघ जो लड़ाई लड़ रहा है उसमें सभी भारतीय शामिल नहीं हैं। दरअसल यह बात है भी ठीक। इससे अब यह दिखाना संघका कर्तव्य हो गया कि संघके कितने लोग एकमत हैं। समय आनेपर 'पीतल है या सोना' यह अपने आप साबित हो जायेगा। लेकिन सच्चे मनुष्यको अपनी सच्चाई ढांकनी नहीं पड़ती। इस विचारसे हमीदिया इस्लामिया अजुंमनमें श्री गांधीने सुझाया कि हम कानूनके पूरी तरह खिलाफ हैं, वह हमें मंजूर नहीं है, ऐसी एक छोटी-सी अर्जी हर भाषामें तैयार करवाई जाये और उसपर सब भारतीयोंके हस्ताक्षर करवाये जायें। ऐसा करनेसे निःसन्देह लड़ाईको बहुत बल मिलेगा।

  1. सर्वश्री स्टैगमान एसेलेन और रॉस द्वारा लिखा गया पत्र; देखिए "भीमकाय प्रार्थनापत्र", पृष्ठ २३७-४०।