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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२५५

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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

इस विचारको मौलवी साहब, श्री उमरजी साले वगैरह सज्जनोंने स्वीकार किया। लेकिन एम॰ एस॰ कुवाड़ियाका मत विरुद्ध होनेसे इसे अगले रविवार तक मुल्तवी रखा है। मैं आशा करता हूँ कि अगले रविवारको यह सर्वानुमतिसे पास हो जायेगा। इसी खयालसे आप सबको नीचे लिखे अनुसार सूचना देनेकी अनुमति मांगता हूँ। यदि प्रस्ताव मंजूर होगा तो:

१. अर्जी हर गाँवमें भेजी जायेगी।

२. हस्ताक्षर दो कागजोंपर लिये जायें और हस्ताक्षरकर्ताका नाम, धंधा और उसका पता दिया जाये।

३. हस्ताक्षर लेनेवाले भाईका नाम अर्जीके कोने में लिखा हो। यह हस्ताक्षर लेनेवालेकी गवाही होगी।

४. अर्जीको ठीक तरहसे पढ़ाये बिना किसीसे हस्ताक्षर न लिये जायें।

५. अर्जीको साफ रखा जाये और जैसे-जैसे मूल और प्रतिलिपि दोनोंपर हस्ताक्षर होते जायें वे कागज संघको भेजे जायें।

६. इस अर्जीपर हस्ताक्षर करवानेका काम १० दिनमें समाप्त होना चाहिए।

७. हस्ताक्षर करवाने के लिए स्वयंसेवक तैयार रखे जायें, जिससे समय बरबाद न हो।

८. इस अर्जीपर हस्ताक्षर करनेवालेका मन दृढ़ हो और वह अन्ततक टिकना स्वीकार करे तब वह हस्ताक्षर करे।

९. यदि कुछ ही हस्ताक्षर होंगे तो यह अर्जी सरकारको भेजी ही नहीं जायेगी।

१०. इस सूचनाको देखते ही हर गाँववाले अपने गाँवकी भारतीय आबादीकी संख्या तार या पत्रके द्वारा संघको सूचित कर देंगे तो बहुत अच्छा होगा और समयकी बचत होगी।

यह अर्जी यदि सरकारको न भी भेजी जाये तो भी हस्ताक्षर लेनेसे हमें यह पता तो चल ही जायेगा कि लोगोंमें सचाई और हिम्मत कितनी है। यदि ज्यादातर लोगों में सचाई नहीं होगी तो हम हर्गिज नहीं जीतेंगे। इसके साथ मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि एक दफा अर्जीकी बात उठाई जानेके बाद यदि हम उसे न भेजें तो उससे हमारी उतनी ही कमजोरी जाहिर होगी। लेकिन जो खुदापर भरोसा रखते हैं वे अपनी कमजोरी जाहिर होनेसे डरनेके बजाय खुश होते हैं। खरे और खोटे रुपयोंके ढेरमें से खोटे रुपयोंको निकाल डालनेमें बुद्धिमानी है। उतना बोझ कम उठाना होगा। ये सब बिलकुल सीधी बातें हैं। इसलिए तुरन्त ही समझ में आ जानी चाहिए।

हमारे कुकृत्य

हमीदियाकी पिछली सभा देखकर मुझे यह विचार आता है कि हमारी नामर्दीके साथ हमारे कुकृत्य भी प्रकट हो जायेंगे। यह तो हो ही नहीं सकता कि कानूनके बारेमें एक तरफ तो हम खुदापर यकीन रखें और दूसरी तरफ लुच्चे और धोखेबाज रहें। हमारी लड़ाई इतनी शुद्ध है। प्रिटोरियामें एक हिन्दू है। उसके सम्बन्धमें कहा जाता है कि उसने शराबकी दूकानमें एक भारतीयको इतनी बुरी तरह मारा कि वह बेसुध हो गया। मारनेवालेपर अबतक मुकदमा नहीं चला है। इसका नतीजा क्या होगा, मैं नहीं जानता। लेकिन उसने मारा है, यह बात सब जानते हैं। जोहानिसबर्ग में कुछ भारतीयोंपर एक गरीब

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