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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री मुहम्मद आदमजी, श्री अली उमर, श्री अहमद हलीम, श्री कासिम मूसा, श्री अलीभाई आकुजी, श्री शाह, श्री मूसाजी अहमद, श्री दाऊद इस्माइल, श्री अहमद ईसे, श्री इस्माइल सुलेमान, श्री डाह्या रामा, श्री कामा और श्री मोमणियात उपस्थित थे। प्रोफेसर गोखलेको निम्न तार[१] भेजनेका प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया:

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-९-१९०७

१९६. अँगूठा निशानीका कानून

इसमें और ट्रान्सवालके कायदेमें हाथी और घोड़े जैसा अन्तर है।[२]

सम्पादक
इंडियन ओपिनियन

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-९-१९०७
  1. यहाँ "तार: गो॰ कृ॰ गोखले" का अनुवाद दिया गया है, देखिए पृष्ठ २३७।
  2. गांधीजीने यह वाक्य गुजराती सान्ध्य दैनिक समाचारपत्र साँझ वर्तमानसे निम्नलिखित उद्धरण प्रस्तुत करते हुए लिखा था:

    बम्बई में अंगूठा निशानी

    'बम्बई गजट' के 'पाठकों के विचार' स्तम्भमें एक शिकायत की गई थी और वह हमने अपने पत्रमें उद्धृत की थी। शिकायत यह थी कि उच्च न्यायालयके पंजीयन विभागको लक्ष्य में रखकर एक कानून लागू किया गया है जिसके अनुसार सब गैर-यूरोपीयोंको अंगूठेकी निशानी देना आवश्यक होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि यह शिकायत निराधार है। यह कानूनकी उस प्रतिसे प्रकट हो जाता है जिसे सरकारने व्यवस्थापिका परिषद् में श्री ओ॰ पी॰ दीक्षितके प्रश्न करनेपर अवलोकनार्थ मेजपर रखा है। इस कानूनके अन्तर्गत, यदि कोई व्यक्ति किसी किस्म के दस्तावेजको इस विभाग में पंजीयित कराना चाहता है तो उसे उस दस्तावेजपर सीधे हाथके अंगूठेकी निशानी लगानी होगी और अंगूठा निशानीकी सरकारी पंजिकामें भी निशानी देनी होगी। इस सम्बन्ध में निम्न नियम बनाये गये हैं:

    (१) दस्तावेजको पंजीयित करानेवाला व्यक्ति शिक्षित औौर पंजीयकका परिचित व्यक्ति हो तो उसकी अंगूठा निशानी नहीं ली जायेगी।

    (२) जो दस्तावेजका पंजीयन कराये वह कोई यूरोपीय महिला हो या कोई ऐसा सज्जन या सम्मानित व्यक्ति हो जिसकी शिनाख्तके बारे में कोई शक न हो सके तो अंगूठा निशानीकी आवश्यकता न होगी।

    (३) जिन व्यक्तियों के दायें हाथके अंगूठे का उपयोग किसी कारण नहीं हो सकता उनको बायें हाथ के अंगूठेकी या वह सम्भव न हो तो किसी अंगुलीकी ही निशानी देनी होगी।

    (४) यह निशानी पंजीयकके सामने ली जायेगी।