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१. जूरियोंकी कसौटी

इस पत्रने जन्मसे ही अपनी प्रवृत्तियोंको प्रयत्नपूर्वक दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंपर असर करनेवाले प्रश्नों तक सीमित रखा है। हमारी धारणा है कि पत्रकारिताकी दृष्टिसे दूसरे प्रश्न चाहे जितने वाञ्छनीय हों, हमें अपनी मर्यादा स्वीकार करनी चाहिए, और उच्चस्तरीय नीतिसे सम्बद्ध अथवा ऐसे प्रश्नोंमें, जिनका इस देशके भारतीयोंसे कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, दखल नहीं देना चाहिए।

लेकिन हर नियमके अपवाद होते हैं। हमें लगता है कि अगर हम सुप्रसिद्ध एमटोंगाके मुकदमेपर', जिसकी ओर आज लोगोंका ध्यान इतना अधिक आकृष्ट है, कुछ नहीं कहते तो अपने पेशेके प्रति वफादार नहीं होंगे। यह विषय वतनी नीतिके मंचसे उठकर मानवताके प्रश्नको स्पर्श करता है और किसी हद तक इसमें निहित सिद्धान्त भारतीयोंपर भी लागू होते हैं। इसलिए हम 'नेटाल मयुरी' में प्रकाशित एक अत्यन्त तर्कपूर्ण और सहृदय अग्रलेखका कुछ अंश सहर्ष उद्धत करते हैं। यह जूरी प्रणालीपर, विशेषकर उस अवस्थामें जब वह गोरों और कालोंके बीच हए मकदमोंपर लागू होती है, एक खला आरोप है। हम अपने सहयोगीसे वतनी लोगोंके प्रति खास दुर्व्यवहार करनेके उस आरोपका खण्डन करने में सहमत है, जो कुछ क्षेत्रोंमें नेटालके विरुद्ध लगाया गया है और जिसका आधार एमटोंगाके मुकदमे में न्यायका गला घोंटा जाना है। हमारा विश्वास है कि नेटालमें जो-कुछ हुआ, वह वैसी ही परिस्थितियोंमें दक्षिण आफ्रिकाके किसी भी हिस्सेमें या दक्षिण आफ्रिका जैसी स्थितियोंवाले किसी अन्य देशमें भी हो सकता है। राग-द्वेष और पूर्वग्रहोंसे ग्रसित जूरियोंके सम्बन्धमें दूसरे देशोंके मुकाबले नेटालका कोई एकाधिपत्य नहीं है। लेकिन इस बातसे कि दक्षिण आफ्रिकामें एमटोंगाके मुकदमे जैसी बातें घटित होती है, जनताको अन्तरात्माको जागना चाहिए, और जिन लोगोंको दक्षिण आफ्रिकाकी कीर्तिका खयाल है उन्हें सोचना चाहिए कि क्या अब जूरीपद्धतिके बारेमें अपने विचार बदलनेका समय नहीं आ पहुंचा। दक्षिण आफ्रिका जैसे देश जहाँ कोई आरामतलब वर्ग नहीं है और जहाँ सभी देशोंके लोग इकट्ठे होते हैं, न्याय-प्रशासनके लिए जिन पद्धतियोंकी व्यवस्था की जा सकती थी उनमें जूरी-प्रणाली लगभग सबसे बुरी है। जूरी-प्रणालीको सफलताकी बुनियादी शर्त यह है कि अभियुक्तके अपराधकी जाँच उसकी बराबरीके लोग करें। और यह मानना मनुष्यकी बुद्धिकी तौहीन करना होगा कि दक्षिण आफ्रिकामें, जब प्रश्न गोरों और कालोंके बीचका हो, अपराधकी ऐसी भी कोई जांच होती है।

जो लोग सचाईको तौलना नहीं जानते और अपने सामने प्रस्तुत बातोंपर सन्तुलित मस्तिष्कसे विचार नहीं कर सकते वे भावनाके अतिरेकमें, सम्भवतः, किसी सही निष्कर्षपर नहीं पहुँच सकते। लिवरपूल एक सुव्यवस्थित और पुराना स्थान है, जहाँ एक जैसे लोग बसते हैं और उनकी अपनी परम्पराएँ हैं, जिनके अनुसार वे आचरण कर सकते हैं। लेकिन

१. एमटोंगा एफ आफ्रिकी था, जिसे कुछ लोगोंने एक अपराधके संदेहमें पीटा था। बाद में उस पर मुकदमा चलाया गया तो जूरीके सदस्योंने उसे दोषी ठहराया। लेकिन गवर्नरने उसे निर्दोष मानकर छोड़ दिया।

७-१