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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

साथ कुछ नहीं किया था। अब श्री पीटर्सका हलफनामा मँगवाया गया है। मुकदमा और चलेगा।

ईलू मुथुका मुकदमा

ईलू मुथुका मुकदमा बहुत ही जानने योग्य है। उसके सम्बन्ध में श्री व्यास द्वारा लिखा हुआ एक प्रभावशाली पत्र मैं नीचे दे रहा हूँ:

मजिस्ट्रेटकी ओरसे ईलू मुथुको दो दिनमें चले जानेका आदेश मिला है। उसे १८९७ में यहां बुलाया गया था। लड़ाईके पहले वह जोहानिसबर्ग में कुककी खेतीपर काम करता था। एक माह उसने रॉबिन्सन खान में काम किया था। कुछ दिन हुए उसे बुलुवायोके पागलखाने में रख दिया गया था; परन्तु डॉक्टरने हवा-पानी बदलनेके लिए यहाँके अस्पतालमें भेज दिया। पंजीयकके आदेशसे पागलखानेका सिपाही उसे पंजीयकके कार्यालय में ले गया। वहाँ उससे उसका सारा हाल पूछा गया, जो उसने ऊपरके अनुसार बताया। अन्तमें पंजीयक महोदयने उसे देश छोड़नेका नोटिस दिया, जिसका परिणाम उपर्युक्त हुआ है। ईलू मुथुका दिमाग अभी फिरा हुआ ही है। उसके पास तीन लुंगियोंके अलावा कुछ नहीं है। भाड़ापत्तीके लिए पंजीयकने अँगूठा दिखा दिया है। मजिस्ट्रेटका कहना है कि यह हमारा काम नहीं है। पागलखाने से भी रुखसतनामा दे दिया गया है।

यह मुकदमा बहुत ही त्रासदायक है। ईलू मुथु भिखारी है। यहाँका पुराना रहनेवाला है। यदि वह पंजीयनके लिए अर्जी न देता, तो उसे कोई नहीं बुलाता। उससे जबरदस्ती अर्जी दिलवाई गई और अब उसे नोटिस मिला है कि वह देश छोड़कर चला जाये। कहाँ जाये? पैसे कहाँसे लाये? किस कारणसे जाये? जिस कानूनके द्वारा ऐसा जुल्म हो उसके सामने यदि कोई भारतीय घुटने टेकेगा तो उससे भारतीय प्रजा भी पूछेगी और खुदा भी पूछेगा। बिना अनुमतिपत्रवाले यदि पंजोयनके लिए अर्जी देंगे तो उनका भी ईलू मुथु जैसा ही हाल होगा और वैसा किया जाना उचित भी है। उनको सुरक्षा अँगुलियाँ घिसनेमें नहीं, बल्कि ट्रान्सवाल छोड़नेमें है। और यदि उनका मामला मजबूत हो तो जेल जाने में है। अब जेल भले और सच्चे लोगोंके लिए है।

चीनियोंकी एकता

यहाँके बड़े व्यापारी हार्विन और पेटर्सन चीनियोंसे बहुत व्यापार करते हैं। वे हर महीने लगभग ५,००० पौंडका माल उधार देते हैं। चीनियोंको उन्होंने नोटिस दिया कि यदि वे नये पंजीयनपत्र न लेंगे तो उन्हें माल उधार देना बन्द कर दिया जायेगा। इसपर चीनियोंने डरनेके बजाय ज्यादा हिम्मत की। उन्होंने कहा "हमारे बिल दीजिए। हम आपके पैसे चुका देना चाहते। आपके मालकी हमें जरूरत नहीं। हम आपके साथ कारोबार बन्द करेंगे।"

यह सुनकर हार्विन साहब शान्त हो गये। उन्होंने चीनियोंसे माफी मांगी और स्वीकार किया कि भविष्यमें पंजीयनपत्र या हिसाबके सम्बन्धमें कोई बात नहीं की जायेगी। हमारे व्यापारियोंको कुछ गोरे व्यापारी धमकाते हैं तो वे डर जाते हैं; और जैसे उनके गुलाम हों, पंजीयनपत्र लेनेको तैयार हो जाते हैं। उस समय यह भूल जाते हैं कि उन्होंने कानूनके आगे घुटने न टेकनेकी शपथ ली है।