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ब्लूमफ़ॉंटीनका 'मित्र': फिर भारतीयोंकी सहायतापर

होनेपर भी, जनरल स्मट्ससे जूझते रहें। फिर देखेंगे कि बीयर विधेयक-जैसी दशा खूनी कानूनकी होती है या नहीं। जंगके बिना रंग जगत में कहीं भी नहीं जमा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-११-१९०७

२५६. सच्ची मित्रता

निःसन्देह ब्लूमफॉंटीनके 'मित्र (फ्रेंड)' की हमारे प्रति सच्ची मित्रता है। 'फ्रेंड' के सम्पादकने अपने २४ तारीखके अंक में एशियाई कानूनपर कड़ी टीका[१] की है। उसमें बताया है कि जो भारतीय विरोध करते हैं उन्हें धन्यवाद दिया जाना चाहिए। कुछ भारतीय डरके मारे पंजीयन करवा लें तो उससे कुछ भी नहीं बनता। किन्तु जो विरोध करते हैं अथवा देश छोड़कर चले जाते हैं वे सिद्ध करते हैं कि कानून बुरा है।

'फ्रेंड' के सम्पादकने ट्रान्सवाल सरकारको सलाह दी है कि उसे सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए। यदि एशियाइयोंको निकाल बाहर करना हो तो उसके लिए लाजमी है कि वह उन्हें हर्जाना दे। हम अपने पाठकोंसे सारा लेख[२] पढ़नेका अनुरोध करते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-११-१९०७

२५७. ब्लूमफॉंटीनका 'मित्र': फिर भारतीयोंकी सहायतापर
"कानून नासमझी-भरा और अन्यायपूर्ण है"

ब्लूमफाँटीन 'फ्रेंड' के २४ तारीखके अंकमें ट्रान्सवाल भारतीयोंके समर्थन में एक अग्रलेख निम्न प्रकार है:

प्रिटोरियासे खबर मिली है कि सरकारको लग रहा है, भारतीयोंका अनाक्रामक प्रतिरोध अपने आप ही टूटने लगा है। इस मान्यताका कारण यह बताया गया कि प्रिटोरियामें लगभग ४८ भारतीय पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें कुछ तो समाजके बहुत ही माने हुए लोग हैं। परन्तु जोहानिसबर्गमें, जो कि भारतीयोंका प्रधान केन्द्र है, केवल १६ व्यक्तियोंने पंजीयन करवाया है, जिनमें एक व्यक्ति स्थानीय है और अन्य बाहरके गाँवोंके हैं। हमारा खयाल है कि इन आंकड़ोंकी अपेक्षा नीचेकी बातमें अधिक अर्थ समाया हुआ है। मालूम हुआ है, कल सवेरे डर्बनसे लगभग १०० भारतीय, जो ट्रान्सवालके ही होने चाहिए, भारतके लिए रवाना होनेवाले हैं।

  1. ऐसा लगता है कि यह लेख प्रकाशित होनेसे कमसे-कम दो दिन पहले, अक्तूबर में लिखा गया था।
  2. देखिए अगला शीर्षक।