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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन ट्रान्सवाल कानूनके अन्तर्गत यह कदम नितान्त आवश्यक समझा गया है, और हो भी गया है। दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे कानून हमें सामान्य रूपसे धनोपार्जनके साधनोंसे वंचित करते हैं; ट्रान्सवाल पंजीयन अधिनियम हमें पुंसत्वहीन बनाता है और हमें लगभग गुलामोंकी स्थितिमें पहुँचा देता है। और चूंकि यह प्रश्न मुसलमानोंको खास तौरसे प्रभावित करता है, इसलिए यदि राष्ट्रीय कांग्रेस ट्रान्सवालके मामलेको विशेष महत्त्व दे तो यह उसके लिए, शायद, शोभनीय ही होगा। कदाचित् दिसम्बर मासके अन्ततक बहुत-से भारतीय एक सिद्धान्तके लिए कारावासका दण्ड भी पा चुकेंगे, और इस प्रकार महासभाका अधिवेशन प्रारम्भ होने तक बहुत ही नाजुक हालत पैदा हो जायेगी।

[आपका, आदि,
इमाम अब्दुल कादिर सालम बावजीर
कार्यवाहक अध्यक्ष
हमीदिया इस्लामिया अंजुमन]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-११-१९०७

२५५. जनरल स्मट्सकी बहादुरी (?)

बहुतेरे भारतीय औरतों-जैसे डर गये हैं कि जनरल स्मट्स तो ऐसे हैं कि जो कहा है वह करेंगे ही। गत सप्ताह हम यह सूचित कर चुके हैं कि उन्होंने दूकानें बन्द करनेके सम्बन्ध में कानून बनाया और लगे हाथ वापस ले लिया। वह कानून एक सप्ताह भर 'गज़ट' में रहा था; इसी बीच बहुतेरे गोरे दूकानदारोंने उसका विरोध किया और जनरल स्मट्स ठंडे पड़ गये। उन्होंने प्रकाशित करने के दस दिनके अन्दर ही उस कानूनको खींच लिया। इसी प्रकार उन्होंने बीयर विधेयक (बीयर बिल) तथा काफिरों-सम्बन्धी कानून वापस लिये थे। दूकान सम्बन्धी कानून उन्होंने ट्रान्सवालके गोरोके भयसे वापस लिया था, और दूसरे दो कानून इसलिए वापस लिये थे कि इंग्लैंड में उनका घोर विरोध हुआ था।

भारतीय भाइयोंको ये तीन उदाहरण अच्छी तरह याद रखने चाहिए। उसका तात्पर्य यह है कि बहादुरसे तो जनरल स्मट्स डरते हैं। किन्तु जिस प्रकार कोई डरपोक पति अपनी पत्नीपर पूरी बहादुरी दिखाता है, उसी प्रकार जनरल स्मट्स भी उन्हीं लोगोंपर बहादुरी बताते हैं जो उनसे डरते हैं, अर्थात् जो स्त्री-जैसे हैं। उन्हें गोरे व्यापारियोंसे डरना पड़ता है, क्योंकि उनकी सत्ता गोरोंपर अवलम्बित है। वे भारतीयोंसे क्यों डरने लगे? भारतीयोंका रूप तो स्त्रियोंके समान दिनमें दस बार बदलता है। वही भारतीय धरना देनेवाला बनता है और वही गुलामीका पट्टा लेता है; वही कानूनका विरोध करनेके लिए अध्यक्षपद ग्रहण करता है और वही हलफनामा देकर गुलामीकी साड़ी पहनता है; वही एक कलमसे हस्ताक्षर करता है कि खुदाकी कसम मैं कानून स्वीकार नहीं करूंगा, और दूसरी कलमसे कहता है कि मुझे गुलामी तो चाहिए ही। अब बताइए, जनरल स्मट्स क्यों डरेंगे? एक गुंजाइश अब भी है सही। वह है, जो भारतीय अभीतक फिसले नहीं हैं वे अन्ततक, बरबाद