ट्रान्सवाल सरकार तो अपनी ओरसे जितना बन पाया, कर चुकी है। ट्रान्सवाल सरकारके जुल्मोंके कारण जिन भारतीयोंको भारत वापस लौटना पड़ेगा उन सबके मनमें ऐसा घाव हो जायेगा जो कभी भर नहीं सकता। और तब यदि ऐसा प्रत्येक मनुष्य आन्दोलनकारी बन जाये और गोरोंके राज्यके विरुद्ध लोगोंको उभाड़े तो उसमें कहना ही क्या है? यह हम जानते हैं कि ट्रान्सवाल बड़ी सरकारकी चिन्ताओंमें वृद्धि करना नहीं चाहता था, फिर भी कोई इनकार न कर सकेगा कि ट्रान्सवालने अपना एशियाई प्रश्न ऐसे ढंगसे निपटाना शुरू किया है कि उससे बड़ी सरकारकी एशियाई प्रश्न विषयक मुसीबत में वृद्धि हुए बिना रह ही नहीं सकती।
नासमझी-भरा और अन्यायपूर्ण कानून
अतः, हम पंजीयन कानूनको नासमझी-भरा और अन्यायपूर्ण मानते हैं। हम यह नहीं मानते कि भारतीय सरकारके दबाव में आकर बड़ी सरकार ट्रान्सवाल सरकारपर जोर डालेगी और एशियाई कानून में संशोधन करनेके लिए कहेगी, अथवा, (जैसा कि कुछ लोगोंको डर है), शायद यह कहेगी कि हमारे देशमें भारतीयोंको आने दिया जाये। इंग्लैंड उपनिवेशोंके बर्तावको बहुत ही सहन करता है; उसके निजी लाभको आँच आ रही हो तो भी वह उपनिवेशोंको उनकी इच्छाके अनुसार चलने देता है। और न वह अपने व्ययसे और अपनी नौसेना द्वारा उपनिवेशोंका संरक्षण करनेका उत्तरदायित्व अपने सिरसे उतार फेंकता है। ट्रान्सवाल यह सब स्वीकार करता है । जनरल बोथाकी सरकार यद्यपि बड़ी सरकारके प्रति मैत्रीभाव रखती है, फिर भी एशियाइयोंके प्रति उन्होंने जो नीति अपना रखी है उसके कारण उनके इंग्लैंडके मित्र उलझनमें पड़ गये हैं। तो क्या कोई अच्छा मार्ग नहीं है?
अच्छा मार्ग
इतना कहने के बाद अब हम उचित मार्ग सुझाते हैं। पहला यह है कि ऐसा कानून बनाया जा सकता है, जिसके द्वारा नये आनेवालोंको आनेसे सर्वथा रोक दिया जा सके। दूसरा यह है कि ऐसे नियम बनाये जा सकते हैं जिन्हें उन सारे एशियाइयोंको पालना होगा जो ट्रान्सवालमें रहना चाहते हों। यदि कोई एशियाई ऐसे कानूनका पालन करनेकी अपेक्षा ट्रान्सवाल छोड़ना पसन्द करे, और यह सिद्ध कर दे कि छोड़नेसे उसे हानि होती है तो उसे पूरा हर्जाना दिया जाना चाहिए। मान लें कि इस तरह ट्रान्सवालके सभी भारतीय जाना चाहें तो भी उनके हक खरीदने में हमें जो खर्च आयेगा वह किसी भारतीय वलवेके खर्च से कम ही होगा। फिर इस सवालके उचित निराकरण में मदद देनेके लिए इस प्रकारके खर्च में बड़ी सरकार भी योग तो देगी ही। भारतीयोंकी परेशानियाँ भी बोअर युद्धका एक कारण हैं, इस कथनके लिए स्वयं बड़ी सरकार जिम्मेदार है। फिर, यदि दक्षिण आफ्रिकाको एक करना है तो सभीको एशियाई प्रश्न तो उठा ही लेना होगा। इससे नेटालका विशेष सम्बन्ध है, क्योंकि उसका काम भारतीय मजदूरोंके बिना चल नहीं सकता। जैसा कि हम पहले बता चुके हैं, नेटालके लिए मार्ग यह है कि वह भारतीयोंके लिए एक अलग ही हिस्सा निश्चित कर दे। उस हिस्से में भारतीयोंको गोरोंके बराबर ही अधिकार होंगे। तब उन्हें उससे