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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

६. हजामत बनाने के बाद फिटकरीकी गुल्लीका उपयोग न किया जाये, बल्कि फुहारी या साफ रुईको गीला करके उपयोग में लाया जाये।
७. स्पञ्जका बिलकुल उपयोग न किया जाये, बल्कि उसकी जगह रुई आदिका उपयोग किया जाये।
८. पाउडर लगानेके फूलकी जगह रुईका उपयोग किया जाये।
९. ब्रशके बाल सफेद होने चाहिए और उसे दिनमें एक बार पानी, साबुन और सोडेमें धोया जाना चाहिए।
१०. बाल बारीक काटते समय गलेपर गिरते हैं। उन बालों को हज्जाम मुंहसे फूंक कर न उड़ाये, बल्कि झाड़ दे।
११. कटे हुए बाल झाड़कर एक कोने में लगानेके बजाय किसी ढक्कनवाले बर्तन में रखे जायें।

उपर्युक्त नियम तथा सूचनाएँ सभी नाइयों को ध्यान में रखनी चाहिए। इन नियमोंके अनुसार जो व्यक्ति काम नहीं करेगा, उसको दण्ड होगा, इतना ही नहीं; बल्कि हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि इतनी सफाई रखना प्रत्येक नाईका कर्तव्य है। देशमें नाइयोंकी लापरवाही अथवा गंदगीसे परस्पर छूत लगनेके कारण दाद, खुजली आदि बीमारियाँ होती हैं। जो नाई उपर्युक्त नियमोंके अनुसार चलेंगे उनका फायदा होगा और माना जायेगा कि उन्होंने सच्ची एवं आवश्यक तालीम ले ली है। इसमें खर्चकी नहीं, इच्छाकी जरूरत है।

सरकारी स्पष्टीकरण

नवम्बरका नोटिस आगे क्यों बढ़ाया गया, इसके बारे में सरकारने स्पष्टीकरण किया है। वह स्पष्टीकरण ही सरकारको दोषी साबित करता है। सरकारको यदि डर नहीं था तो नवम्बर तक अवधि बढ़ाने की क्या जरूरत थी? सरकारने कारण बताया है कि नवम्बरमें बिलकुल काम ही न था, इसलिए एशियाइयोंपर मेहरबानी की। यह बात तथ्यानुरूप नहीं है। क्योंकि नवम्बरमें गिरफ्तारियाँ नहीं करनी है, यह सरकारको मालूम था। फिर यदि ऐसा ही था तो घर-घर सिपाही क्यों भेजे गये? यह भी देखना है कि सरकारने अब भारतीयोंकी अर्जीकी बात छोड़ दी है। इस विचित्र स्पष्टीकरणका उद्देश्य 'लीडर' के लेखका जवाब देना है। 'लीडर' ने, जिन-जिन 'मुखियों' ने अर्जी दी है, उनके नाम माँगे हैं, किन्तु ऐसे नाम तो हैं ही नहीं। इसलिए सरकार दे कहाँसे? अन्तमें सरकार स्पष्टीकरण में कहती है कि दिसम्बरसे तो कानून अमलमें आयेगा ही। यह चेतावनी कितनी बार दी जायेगी? बहुत बार 'भेड़िया आया' का शोर मचाया जानेके कारण जैसे गड़रिये निर्भय हो गये थे, वैसे ही भारतीयोंका समाज भी निर्भर हो गया है। यहाँतक कि जब दरअसल भेड़िया आया था तब किसी गड़रियेने नहीं माना कि भेड़िया आया है। किन्तु सच्चा कानून रूपी भेड़िया आयेगा तब भी भारतीय डरें, इसके लिए कोई कारण नहीं मालूम होता। क्योंकि जेल या देश-निकाला रूपी भेड़ियेको तो भारतीय समाज फाड़कर खा गया है। इसलिए सरकारका भेड़िया भले आता रहे।

गोरे नरम होने लगे हैं

'रैंड डेली मेल' में समाचार है कि श्री गांधी और दूसरे भारतीयोंने प्रिटोरियाकी सार्वजनिक सभामें साफ कहा है कि भारतीय समाज अँगुलियाँ लगाना कभी स्वीकार नहीं करेगा।