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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

डर्बनसे तार भेजने वाले भाइयोंको यह बात याद रखनी है, और याद रखना है कि कहीं "मिट्टी" की धूल न बन जाये।[१]

ईसप मियाँका सख्त जवाब

श्री ईसप मियाने जनरल स्मट्सके स्पष्टीकरण के सम्बन्धमें 'लीडर' और 'स्टार' को सख्त पत्र लिखा है। उसका अनुवाद अगले सप्ताह दूंगा। उसमें सिद्ध कर दिया गया है कि सरकारके झूठकी तो सीमा ही नहीं रही।

ठीक हुआ है

जोहानिसबर्गमें जिन लोगोंने गुलामी के पट्टेके लिए अर्जी दी थी उनमें से एक कोंकणी और एक मद्रासीको देश छोड़नेकी सूचना मिल चुकी है।

दयालजीको कैदकी सजा और उसकी अपील

दयालजी प्रागजी देसाईपर गोविन्दको मारने के सम्बन्ध में मुकदमा चला था। प्रिटोरिया अदालतने उसका फैसला दे दिया है। उसमें उन्हें ४ महीने की सख्त सजा मिली है। उसके खिलाफ उन्होंने अपील दायर की है।

गद्दार

पिछले शनिवार तक पंजीयन करानेवालोंकी सूची प्रिटोरियासे [३०], पीटर्सबर्गसे [१६], लुई ट्रिचर्डटसे [३], मिडेलबर्गसे [३], पॉचेफ्स्ट्रूमसे [४], स्टैंडर्टनसे [५] और जोहानिसबर्गसे [१]।

एक दयनीय मामला

मिरांडा नामक पोर्तुगीज भारतीयको बगैर अनुमतिपत्रका समझकर १० अक्तूबरके पहले ट्रान्सवाल छोड़ने का हुक्म मिला था। उस मीयादके बीत जाने के कारण पिछले शनिवारको फिर उसे अदालत में खड़ा किया गया। अभियुक्तने बताया कि उसके पास ट्रान्सवालसे बाहर जाने के लिए पैसे नहीं हैं, तो कैसे जाये? न्यायाधीशने अभियुक्तको दोषी ठहराकर एक महीनेकी सख्त कैद की सजा दी। और कैद पूरी होनेके बाद सात दिनमें देश छोड़नेका आदेश दिया; और यदि वह न छोड़े तो छः महीने की दूसरी कैदकी सजा सुनाई। यह मुकदमा वास्तवमें दयाजनक है। अब उस व्यक्तिको सरकारके सिर चढ़कर बार-बार जेल भोगनी चाहिए। तभी सरकारकी अक्ल ठिकाने आयेगी। कहना आवश्यक नहीं कि यदि यह लड़ाई अन्ततक लड़कर सरकारको थका न दिया जायेगा तो ऐसे दुःख ट्रान्सवालके भारतीयोंके भाग्यमें हमेशाके लिए जड़ दिये जायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-११-१९०७
  1. मूल गुजरातीमें "माटी" शब्द आया है जिसका अर्थ बहादुर भी होता है। उस दृष्टिसे इन दो वाक्योंका अर्थ यह भी हो सकता है: "जो संघर्षसे दूर हैं वे अपनेको बहादुर ही समझते हैं। डर्बनसे तार भेजने वाले भाइयोंको यह बात याद रखनी है, और याद रखना है कि अवसर आनेपर कहीं उनकी बहादुरीका दिवाला न निकल जाये।