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२६८. पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर' को

जोहानिसबर्गके 'लीडर' में श्री गांधीका एक पत्र प्रकाशित हुआ है, वह इस प्रकार है[१]:

महोदय,

आपने अपने आजके अंक में लिखा है कि जो ४०० के करीब भारतीय पंजीकृत हुए हैं उन सबको ट्रान्सवालमें रहनेका कुछ अधिकार नहीं है, ऐसा ब्रिटिश भारतीय संघने कहा है। परन्तु मुझे कहना चाहिए कि सबके किसी पदाधिकारीने ऐसा कहा हो—यह मेरी जानकारीमें नहीं है। मुझे इतना मालूम है कि हमारे धरनेदारोंमें से किसीने ऐसा कुछ कहा था; परन्तु वह केवल शेखी मारने के लिए था। यह बात कही गई तभी धरनेदारोंके मुखिया श्री पी॰ नायडूने उसे ठीक कर दिया था। परन्तु वह समाचार आपके अखबारमें नहीं छपा। संघके पदाधिकारीको ओरसे जो बात कही गई है सो यह है कि, सरकारने कानूनका जो अर्थ किया है उसके अनुसार जिन्हें यहाँ रहनेका कुछ भी अधिकार नहीं है, ऐसे कमसे-कम चार व्यक्तियोंने पंजीयनके लिए अर्जी दी है, और सम्भवतः उनको पंजीयनपत्र प्राप्त भी हो गये हैं। संघ यह नहीं मानता कि इन लोगोंको पंजीयनपत्रका अधिकार नहीं है।

अर्जियाँ लेनेके लिए सरकार अब भी कार्यालय चालू रखना चाहती हो तो वह कोई मेहरबानी कर रही है, इसे माननेसे मैं आदरपूर्वक इनकार करता हूँ। क्योंकि इससे तो अधिकांश भारतीय केवल यही समझेंगे कि इसमें सरकारकी निर्बलता ही प्रदर्शित होती है। भारतीयोंने बहुत ही शालीनतासे खुदाके नामपर ली हुई शपथकी खातिर बता दिया है कि सरकारसे जो भी बने, कर ले; किन्तु पंजीयनकी परेशानी हमें नहीं चाहिए। कहा गया है कि धरनेदारोंके कारण भारतीय 'प्लेग'-कार्यालयमें नहीं जा पाये हैं और इसी कारण अवधि बढ़ाई गई है। परन्तु धरनेदार तो अब भी प्रिटोरियामें निगरानी रखेंगे ही।

आप यह कह रहे हैं कि जनरल स्मट्सने धमकियाँ दी हैं और बड़ी सरकारने हस्तक्षेप करनेसे फिलहाल इनकार कर दिया है; इसलिए भारतीयोंके विरोध करनेसे क्या लाभ है। परन्तु भारतीयोंकी लड़ाई बड़ी सरकारके हस्तक्षेप अथवा जनरल स्मट्सकी दयापर निर्भर नहीं है। इसमें संदेह नहीं कि भारतीय समाजने जो लड़ाई छेड़ रखी है वह सफल हुई तो अनुमान है कि उपनिवेशोंमें उनकी प्रतिष्ठा बढ़ जायेगी। किन्तु वे यह भी जानते हैं कि लड़ाई में उन्हें सर्वस्व खोना पड़ सकता है। मैं मानता हूँ कि ऐसा होगा तो नहीं, किन्तु हुआ भी तो भारतीय अग्निमें तपे हुए सोनेकी तरह निखर उठेंगे। यह एक लाभ ही है। मैं निःसंकोच कहता हूँ कि श्री स्मट्स और उनका कानून दोनों मिलकर भारतीय समाजको जो कुछ देंगे उसकी तुलनामें भारतीय समाजके लिए उपर्युक्त लाभ बेहतर है। उस समय आपको भी पता चल जायेगा कि प्रवासी कानूनसे उसे स्वीकृति प्राप्त हुई तो, अथवा अन्य चाहे जैसे, जुल्मी कानूनोंसे डर कर भारतीय समाज अपने ग्रहण किये हुए मार्गसे पीछे हटनेवाला नहीं है। यदि वह पीछे हट गया—और वह नहीं हटेगा, यह कहनेका जिम्मा मैं लेना नहीं चाहता—तो हर भारतीयको पता चल जायेगा कि ऐसा करना तो कड़ाहीसे निकलकर भट्टीमें गिरनेके समान है।

  1. मूल अंग्रेजी पत्रके अनुवादके लिए देखिए "पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर' को", पृष्ठ ३२२-२३।