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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

सोचकर मुझे ये नाम सार्वजनिक तौरसे प्रकट करने पड़े हैं। इनके अलावा खोजा वेलजी केशवजी तथा खोजा मनजी केशवजीके नाम भी देखता हूँ। दूसरे नाम भी मेरे पास पहुँचे हैं; लेकिन उन्हें बादमें दूंगा। विशेष तौरसे उल्लेखनीय नाम ही इस समय दे रहा हूँ।

गद्दारोंसे विनती और उन्हें सलाह

दुनियाका रिवाज दुःखोंको भूल जानेका है। इसलिए मैं मान लेता हूँ कि कलसे गद्दारोंके काले कारनामें हम भूल जायेंगे। उनका अपराध समाजके विरुद्ध है। फिर भी वे भारतीय हैं, इस बातको हम याद रखेंगे। यदि उन्हें सच्ची शर्मा आई हो और वे समाजका भला चाहते हों, तो जनवरीमें शुरू होनेवाली लड़ाईमें वे भाग ले सकते हैं। परवाना लेते समय उन्हें गुलामीका पट्टा दिखाना होगा। यदि वे वह पट्टा न दिखायें तो उन्हें पट्टा न लेनेवाले भारतीयों-जैसा दुःख उठानेका लाभ मिल सकता है। जिन गद्दारोंको पश्चात्ताप हो वे इस प्रकार कर सकते हैं; और मैं आशा करता हूँ कि ऐसी हिम्मतवाले कुछ तो निकलेंगे ही।

जनवरीमें क्या होगा?

उपर्युक्त सलाह देते समय जनवरीका प्रश्न तुरन्त उठ खड़ा होता है। जिस प्रकार हमने दिसम्बरका विचार किया उसी प्रकार जनवरीका भी करना है। दिसम्बरमें सरकारने जोर नहीं दिखाया—वह दिखा नहीं सकी। मैं तो समझता हूँ वैसा ही जनवरीमें भी होगा। किन्तु यह तो माना नहीं जा सकता था कि दिसम्बरमें वह किसीको नहीं पकड़ेगी। उसी प्रकार जनवरीमें किसीको परेशानी नहीं होगी यह भी मैं नहीं मानता। इतना तो अच्छी तरह याद रखना चाहिए कि जो लोग गुलामीका पट्टा नहीं दिखा सकेंगे उन्हें परवाना नहीं मिल सकेगा। उसमें सरकारके लिए ढील देने की भी बात नहीं रहती। वैसी विज्ञप्ति निकाली गई है; इसलिए वह तो अमलमें आयेगी ही। तब क्या किया जाये? उत्तर कई बार दिया जा चुका है और वह है: बिना परवाने के व्यापार किया जाये और जब सरकार पकड़े तथा जुर्माना हो तब जुर्माना न देकर जेल जायें। जेल ही रामबाण दवा है। सभी परवानोंका काम सरकारके हाथमें नहीं है। काफिर भोजनगृहों तथा फेरीवालोंके परवाने नगरपालिकाके हाथ में हैं। अर्थात् काफिर भोजनगृहवालों और फेरीवालोंको पकड़नेका सरकारको अधिकार नहीं है। नगरपालिका जो हुक्म देगी उसके अनुसार होगा। अतः यह सम्भव है कि कोई न कोई नगरपालिका तो वार करेगी ही। जैसे, वॉक्सबर्गको नगरपालिका। इससे डरना नहीं, बल्कि खुश होना चाहिए। सरकारने आजतक हमपर हाथ नहीं डाला, उसे मैं अच्छा नहीं मानता। यह लड़ाई ऐसी है कि इसमें हमारा छुटकारा हमारे हाथ है। फिर जबतक बहुत लोगोंने जेलका कष्ट नहीं भोगा तबतक हममें सच्ची हिम्मत नहीं आयेगी। इस प्रकार गिरफ्तार किये जानेवाले लोगोंका बचाव श्री गांधी मुफ्त करेंगे, यह लिखा जा चुका है। बचानेका अर्थ इतना ही है कि उस-जैसे बहादुरको जेलके लिए बिदाई देने जायेंगे। मुझे खेद है कि परवानेके बारेमें यदि कोई जुर्माना न दे तो उसे जेलकी सजा होगी। लालच बुरी चीज है और यदि कोई उस लालचमें आकर जुर्माना दे देगा तो बहुत बुरा होगा। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि सब भारतीय अन्तःकरणसे यह शपथ ले लेंगे कि इस सम्बन्धमें वे अपना या दूसरोंका जुर्माना नहीं देंगे।