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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/४७१

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३३४. रामसुन्दर पण्डित[]

श्री रामसुन्दर पण्डित १३ तारीखको जेलसे छूट गये। उनका स्वागत करनेके लिए बहुतसे भारतीय जेलके दरवाजेपर हाजिर थे। उनमें श्री ईसप मियाँ, मौलवी साहब, श्री फैन्सी, श्री थम्बी नायडू, श्री उमरजी, श्री गांधी आदि थे। प्रिटोरियासे श्री काछलिया, श्री पिल्ले तथा श्री गोपाल आये थे। वे ठीक साढ़े आठ बजे जेलसे बाहर आये। चीनी संघकी ओरसे श्री क्विन आदि उपस्थित थे। पण्डितजीका स्वागत फूल-मालाओं और गुलदस्तोंसे किया गया।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-१२-१९०७

३३५. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
गद्दारोंकी संख्यामें वृद्धि

एक बार तो एशियाई कार्यालय सच ठहरा है; उसके कथनानुसार कुल मिलाकर ५११ भारतीयोंने गुलाम बननेके लिए अर्जियां दी हैं। भारतीयोंके हिसाबसे केवल ३९९ लोगोंने ही अर्जियाँ दी हैं। किन्तु मेरे पास वास्तविक खबर पहुँची है। उससे मैं देखता हूँ कि ५११ ही सही संख्या है। किन्तु उसमें जो ज्यादा खेदजनक खबर है सो यह है कि सेठ एम॰ सी॰ कमरुद्दीनकी पेढ़ीके श्री हसन मियाँ कमरुद्दीन झटाम, भारतीय विरोधी कानूननिधिके कोषाध्यक्ष श्री गुलाम मुहम्मद हुरजुग तथा प्रिटोरियाके श्री हाजी कासिम, हाजी जूसब तथा श्री अली हबीब ये सब काला मुँह करवा चुके हैं। श्री हसन मियाँकी बात मैं छोड़ देता हूँ। मैं समझता हूँ कि इस कानूनके बारे में उनके मनमें एक पागलपन समाया हुआ है। किन्तु श्री गुलाम मुहम्मदकी बात बहुत ही खेदजनक है। जान पड़ता है, इन दोनोंने बहुत ही गुप्त तरीकेसे काला काम किया है। इनके बारेमें कुछ समय पहले एक अफवाह उड़ी थी। किन्तु मैंने उसपर भरोसा नहीं किया। वह अफवाह सच निकली यह देखकर मैं लज्जित हूँ। श्री हाजी कासिम तथा श्री अलीने भी बहुत ही छिपे तरीकेसे अपनेको पंजीकृत किया जान पड़ता है। उनके शब्द मुझ यह लिखते समय भी याद आते हैं। उन्हें यहाँ लिखना यद्यपि बेकार मानता हूँ, फिर भी इतना कहना तो अपना कर्तव्य समझता हूँ कि श्री हाजी कासिम तथा श्री अली जैसे लोगोंको पंजीकृत होना ही था तो हिम्मतके साथ सामने आकर होना चाहिए था। सूचीमें उनका नाम मैं देखता हूँ। इससे प्रकट होता है कि उन्होंने अन्तमें हाथ घिसे हैं। मेरे लिखने से उन्हें चोट पहुँचेगी। मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूँ कि उनकी नामर्दीकी खबर सुनकर मुझे जो चोट पहुँची है उससे अधिक चोट उन्हें नहीं लगी होगी। समाजके भीतरसे झूठी शर्म, झूठा डर और झूठा काम निकल जाये, यही

  1. यह "विशेष रिपोर्ट" के रूपमें छपा था।