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भारतकी दशा

ही मानते हैं। यदि इसी प्रकार सब करने लगें तो विभिन्न धार्मिक या राजकीय संगठनोंको पैसेकी जो तंगी होती है वह नहीं भोगनी पड़ेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७

३४४. कुछ अंग्रेजी शब्द

स्वदेशाभिमानकी एक शाखा यह भी है कि हम अपनी भाषाका मान रखें, उसे ठीक तरहसे बोलना सीखें और उसमें विदेशी भाषाके शब्दोंका उपयोग यथासम्भव कम करें। गुजरातीके कोई अच्छे शब्द हमें नहीं सूझे, इसलिए हम कुछ अंग्रेजीके शब्द जैसेके-तैसे काममें लाते रहे हैं। उनमें से निम्नांकित कुछ शब्द हम पाठकोंके सामने पेश करते हैं। जो-कोई उनके लिए अच्छे शब्द बतायेगा और जिसके शब्द स्वीकार किये जायेंगे उसका नाम हम प्रकाशित करेंगे, और कानूनकी जो पुस्तक हमने प्रकाशित की है उसकी दस प्रतियाँ उसे भेंटमें देंगे, जिससे वह उनका प्रचार कर सके। पुस्तक भेंट करनेका उद्देश्य प्रलोभन देना नहीं, बल्कि सम्मान देना और खूनी कानूनके बारेमें जानकारीका प्रचार करना है। हम चाहते हैं कि हमारे पाठक वह भेंट पानेके लिए नहीं, बल्कि स्वदेश हितके लिए कष्ट उठाकर हमें इन शब्दोंकी जानकारी दें। शब्द निम्नानुसार हैं:

पैसिव रेज़िस्टेन्स; पैसिव रेज़िस्टर; कार्टून; सिविल डिसओबिडिएन्स।

इनके अलावा और भी शब्द हैं। किन्तु उनपर फिर विचार करेंगे। उपर्युक्त अंग्रेजी शब्दोंका हम शब्दार्थ नहीं उनका भावार्थ चाहते हैं। यह बात पाठक ध्यानमें रखें। शब्द संस्कृतसे निकले हुए हों या उर्दू, वे काम आयेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१२-१९०७

३४५. भारतकी दशा

जोहानिसबर्गवाले श्री दादाभाईके बड़े लड़केकी मृत्युके समाचारसे हमारे मनमें कई तरहके विचार आये हैं। भारतमें ऐसी मृत्युएँ हर वर्ष लाखोंकी संख्या होती हैं। प्लेगसे गाँव-गाँव उजड़ गये हैं। कुटुम्बके-कुटुम्ब नष्ट हो गये हैं। माँ-बाप और बच्चे—सभीके महामारीसे खत्म हो जाने के समाचार बहुधा हमारे पढ़नेमें आया करते हैं।

और जगहोंमें भी महामारी होती है, किन्तु वहाँ भारत जितना नाश नहीं करती। इसका कारण क्या है? यह प्रश्न हर भारत-हितेच्छुके मनमें आये बिना नहीं रहता होगा। हमारी रायमें इस प्रश्नके उत्तरमें भारतके सभी हितोंका समावेश हो जाता है। प्रश्न करना सरल है, किन्तु उत्तर देना कठिन है। और उत्तर देकर सुननेवालोंका समाधान कर देना और भी मुश्किल है।