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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/५४०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

 

ब्रिटिश भारतीय और ट्रान्सवाल?[]
बोअर गणराज्यमें

ट्रान्सवालके भारतीय जिन निर्योग्यताओंसे पीड़ित हैं उनका इतिहास १८८५ से आरम्भ होता है जब महामहिम सम्राट की सरकार और ट्रान्सवालकी गणतन्त्रीय सरकार में झगड़ा शुरू हुआ था। उस समय यूरोपीय व्यापारियोंने, जिनमें से बहुतसे न तो ट्रान्सवालके नागरिक थे और न तबतक ब्रिटिश प्रजाजन ही थे, अपने प्रतिस्पर्धी उन कथित अरब व्यापारियोंके विरुद्ध कानून बनानेके लिए ट्रान्सवाल सरकारपर दबाव डाला जिनमें से बहुतसे वस्तुतः ब्रिटिश भारतीय थे।

लन्दन समझौतेकी धारा १४ में कहा गया था कि वतनियों के अलावा बाकी सब लोगोंको, जो दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके कानूनका पालन करते हों:

(क) अपने परिवारों सहित दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके किसी भी भाग में प्रवेश करने, यात्रा करने या रहने की पूरी स्वतन्त्रता होगी;

(ख) मकानों, कारखानों, गोदामों, दुकानों और अन्य स्थानोंकी मिल्कियत रखने या उनको किराये पर लेनेका अधिकार होगा; और

(ग) स्वयं या कारकूनों के द्वारा जिनको वे नियुक्त करना ठीक समझें, व्यापार-व्यवसाय चलानेकी अनुमति होगी।

१८८५ में ट्रान्सवालके राज्य-सचिवने (तत्कालीन उपनिवेश मन्त्री) लॉर्ड डर्बीको पत्र लिखा कि उनकी सरकार प्राच्य देशीय लोगोंके, जो प्रायः दूकानदार हैं और जो गणराज्यमें बस गये हैं, नियन्त्रणके लिए कानून बनाना चाहती है। उन्होंने महामहिम सम्राटकी सरकारसे इस सम्बन्धमें अपनी सम्मति व्यक्त करनेकी प्रार्थना की कि क्या उक्त धारा १४के अन्तर्गत ऐसा कानून बनाना विधान सम्मत होगा।

तत्कालीन उच्चायुक्त सर हर्क्युलीज रॉबिन्सनने राज्य-सचिवके पत्रकी पुष्टि इस सिफारिशके साथ की कि पूर्वोक्त धारा १४ में 'वतनियों' शब्दकी जगह 'आफ्रिकी वतनी या चीनी कुली प्रवासी' कर दिया जाये। इसमें खयाल यह था कि 'अरब' व्यापारियोंके जो स्वार्थ स्थापित हो चुके हैं उनको सुरक्षित रखा जाये और गणराज्यके हीन वर्गके एशियाइयों, जैसे कुली प्रवासियोंके विरुद्ध, कानून बनानेकी स्वतन्त्रता दे दी जाये। फलस्वरूप दक्षिण आफ्रिकी गणतन्त्री सरकारने १८८५ का कानून ३, जो बादमें १८८६ में संशोधित किया गया, स्वीकृत किया। यह 'एक एशियाई' आदिम जातिके लोगोंपर लागू होता था। और उसके अन्तर्गत उन्हें:

(क) गणतन्त्रमें रहने या व्यापार करनेके अधिकार प्राप्त करनेके लिए ३ पौंड शुल्क देना आवश्यक था;

(ख) नागरिक अधिकारके उपयोगसे वंचित कर दिया गया था;

(ग) अपने नाम स्थावर सम्पत्ति खरीदनेकी मनाही थी; और

(घ) केवल उन गलियों, मुहल्लों और बस्तियों में रहने की अनुमति थी जिनका निर्देश किया जाये।

इसके विरुद्ध तुरन्त ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायतें सुनाई दीं, क्योंकि दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य इस कानूनको बिना किसी भेदभावके गणराज्यमें रहनेवाले सब एशियाइयोंपर लागू करना अपना अधिकार मानता था। यह लगभग निश्चित है कि खास ट्रान्सवालमें भारतीय कुली कभी नहीं आये हैं। इसलिए १८८५ का कानून ३ 'अरब' व्यापारियोंपर लागू करनेकी दृष्टिसे ही बनाया गया होगा और यह प्रत्यक्ष हो जाता है कि ऊपर बताये गये ६ जनवरीके प्रस्तावपर मंजूरी देने में साम्राज्य सरकार और गणतन्त्री सरकारका आशय एक न था।

साम्राज्य सरकारने बार-बार कहा कि कानून ३ की व्याख्या उस समझौते के विरुद्ध है जिसके अन्तर्गत साम्राज्य सरकारने कानूनको पास करने की मंजूरी दी और उससे लन्दनका समझौता भी भंग होता है। इसके फलस्वरूप एक समझौता हुआ और गलियों, मुहल्लों और बस्तियों में निवास सम्बन्धी धारामें शर्त के रूपमें "सफाईके उद्देश्यसे"

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