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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय


अब उपनिवेशके सभी वैध निवासी एशियाई १९०७ के कानूनसे नये सिरेसे पंजीयन करानेके लिए पेश होने, एशियाई पंजीयकको उपनिवेशमें अपने रहने के अधिकारके सम्बन्धमें सन्तुष्ट करने, और यदि उसमें सफल हो जायें तो जो कानून छोटी-छोटी बातोंमें इतने अपमानकारी ढंगका है कि उसके कारण अबतक नम्रतासे रहनेवाले लोगोंको खुला विद्रोह करना पड़ा है, उससे संलग्न नियमों के अन्तर्गत दी हुई विधिसे निजी जाँच करानेके लिए बाध्य हैं। प्रार्थीको अपना पूरा नाम, प्रजाति, जाति या सम्प्रदाय, आयु, हुलिया, निवास स्थान, धन्धा, जन्म-स्थान, ट्रान्सवालमें पहली बार आनेकी तारीख, ३१ मई १९०२ को जहाँ थे उस स्थानका नाम, पिताका और माँका नाम, पत्नीका नाम, बेटे और आठ वर्षसे कम आयुके आश्रित बालक, उनके नाम, उनकी आयु, और संरक्षकके साथ उनका सम्बन्ध, यह सब ब्योरा देना लाजिमी होता है। इसके अतिरिक्त उसको अपने दोनों हाथों के अंगूठे; अपनी तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियोंकी निशानियों और प्रत्येक हाथकी चारों अँगुलियोंकी एक साथ निशानी देनेका नियम है। इसका अर्थ यह है कि एशियाई अधिवासियों के वर्तमान अधिकार, जो उन्हें ट्रान्सवाल सरकार के अधीन मिले थे और जिनके सम्बन्धमें लॉर्ड मिलनरने १९०३ में फिर आश्वासन दिया था, बिना विचारे अवैध कर दिये गये हैं और उनकी सत्यता पुनः सिद्ध करनेका भार उनके मालिकोंपर डाल दिया गया है। उच्चायुक्तकी सलाहपर स्वेच्छा से लिये गये पंजीयन प्रमाणपत्र लौटा दिये जाने चाहिए और उनके स्थानपर दूसरे प्रमाणपत्र ले लेने चाहिए। ये दूसरे प्रमाणपत्र सोलह वर्षं या अधिक आयुके प्रत्येक एशियाईको सदा साथ रखने चाहिए और उपनिवेशमें कानून द्वारा संस्थापित पुलिस दलके किसी भी सदस्य या उपनिवेश सचिव द्वारा अधिकृत किसी अन्य व्यक्तिके माँगनेपर दिखाने चाहिए। आठ वर्षसे अधिक आयुके सब कानूनी अधिवासी एशियाइयोंके लिए पंजीयन अनिवार्य है और सोलह वर्ष से कम आयुके ऐसे प्रत्येक बच्चे के संरक्षकको ऐसा न करने की अवस्थामें १०० पौंड जुर्मानेकी या तीन मासकी कड़ी केंदकी सजा दी जा सकती है। उपनिवेश के ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायत है कि ट्रान्सवाल गणराज्यके भेदभावकारी कानून के कारण उनके दर्जे में जो कमी हुई थी वह ब्रिटिश उपनिवेशमें बनाये गये इस कानूनके अन्तर्गत होनेवाली वर्तमान अप्रतिष्ठा की तुलना में कुछ नहीं है। उनका कहना है कि उससे उनपर सदाके लिए हीन और अवांछनीय होनेकी छाप लग जाती है। तब वे ऐसे अविश्वसनीय मान लिये जाते हैं कि उन्हें संदिग्ध और अपराधी व्यक्तियों के समान अपनी शिनाख्त कराने और निगरानी में रहने की आवश्यकता होती है। यह स्मरण रहे कि यह अधिनियम उपनिवेशके वैध निवासी "एशियाइयों" पर लागू होता है और केवल वे एशियाई जो ट्रान्सवालमें उसके विल्यसे पहले बस चुके थे "वैध निवासी" हैं । इस कानूनको उसके निर्माताओंने इस आधारपर आवश्यक बताया था कि उनके कथनानुसार देशमें भारतीय बड़ी संख्या में अवैध रूपसे आ रहे हैं। अभीतक ऐसी बड़ी संख्या में प्रवेशका कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। जब सन् १९०३ के अन्तमें तत्कालीन एशियाई पंजीयक कप्तान हैमिल्टन फाउलसे इस कथित अवैध प्रवेशके सम्बन्ध में स्पष्टीकरण माँगा गया था तो उन्होंने उत्तर दिया था: "यह विश्वास करनेका कोई कारण नहीं है कि एशियाई लोग उपनिवेशमें अनधिकृत रूपसे आ रहे हैं।" उन्होंने यह भी बताया था कि १९०३ के प्रारम्भमें एशियाई बड़ी संख्यामे आवश्यक अधिकारपत्रके बिना प्रवेश करनेमें सफल हो गये थे, किन्तु वे तुरन्त गिरफ्तार कर लिये गये थे और निर्वासित कर दिये गये थे। उन्होंने आगे कहा था : "किसी अनधिकृत एशियाईका उपनिवेशमें विना गिरफ्तार हुए अधिक समय तक रहना लगभग असम्भव है।" इससे ताजा श्री चेमनेकी रिपोर्ट में चोरीसे प्रवेशका अनिश्चित और अविश्वसनीय आरोप है और स्पष्ट है कि उसके पीछे उस समय अध्यादेश लागू करनेके औचित्यको सिद्ध करनेका खयाल था। संक्षेपमें यह बताती है कि "३१ दिसम्बर १९०६ को समाप्त होनेवाले वर्ष में ३७५ ऐसे एशियाई पुरुष उपनिवेशमें आये या रहते हुए पाये गये जिनके पास नियमित प्रवेशपत्र नहीं थे।" इससे इनकार नहीं किया गया है कि ये "अवैध प्रवासी" सम्भवतः १९०२ के बादके चार वर्षोंमें किसी भी समय आ गये होंगे। और यह महत्वपूर्ण बात है कि उनमें से केवल २१५ मामलोंमें न्यायाधीशोंके सम्मुख अभियोग चलाये गये और उनको सजाएँ दी गई।

"खासी संख्या में अवैध भारतीय प्रवास" की जो चिल्लाहट की गई और उसके साथ जो ये आरोप लगाये गये कि अधिवासी एशियाई और चोरीसे देशमें आनेके इच्छुक लोगोंकी मिलीभगत है, उनके उत्तर में