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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इकरारनामेसे निकल जायेगा और यदि आवश्यक हुआ तो वह दूसरा इकरारनामा कर लेगा। इसका उद्देश्य यह है कि आज जो जकात देनी पड़ती है उसे बहुत ही घटाकर जरूरी चीजोंके दाम गिराये जायें, जिससे गोरे विलायतमें जितने खर्च में गुजर कर लेते हैं लगभग उतने ही कम खर्च में यहाँ रह सकें। आज ट्रान्सवालकी सम्पन्नता केवल खान-उद्योगपर निर्भर है। खेतीको आवश्यक प्रोत्साहन देकर यह स्थिति दूर की जायेगी। खेतीको प्रोत्साहन देने और खेतोंके बांध बनानेमें सहायता देनेके लिए एक विशेष बैंक खोला जायगा।

यह बैंक किसानोंको पैसा उधार देगा। इस रकमकी पूर्तिके लिए बड़ी सरकार स्थानीय सरकारको ५०,००,००० पौंड कर्ज देगी।

इस भाषणका असर

इस भाषणसे खान-मालिक बड़ी उलझनमें पड़ गये हैं। यह सम्भव नहीं कि उन्हें काफिर ज्यादा तादादमें मिल सकें। इसलिए डर है कि जोहानिसबर्गकी आज जैसी हालत कुछ वर्षों तक बनी रहेगी। किन्तु इसका सबसे बड़ा असर यह होगा कि शायद भारतीयोंके लिए बोरिया-बिस्तर बाँधनेका समय आ जाये। स्थानीय सरकारका दृढ़ निश्चय जान पड़ता है कि ट्रान्सवालके मजदूरोंके सिवा किसी भी काले आदमीको न रहने दिया जाये। अत: यदि भारतीय कौम जरा भी पस्तहिम्मत दिखाई दी तो उसे भगानेमें वह पीछे रहेगी, सो बात नहीं। भारतीय समाजके सामने यह समय “मरूँ अथवा मारूँ" का है।

मजदूर-रक्षक कानून

जान पड़ता है, मेरी पिछली टीकाको जोर देनेवाला एक और कानून इस सत्रमें पास होगा। विभिन्न कारखानोंमें काम करनेवाले मजदूरोंको यदि काम करते समय चोट लग जाये तो उन्हें या उनके बाल-बच्चोंको हर्जाना देनेका कानन 'गजट' में प्रकाशित हआ है। यह कानून केवल गोरे मजदूरोंपर लागू होता है। यानी, मान लें कि खानमें या दूसरी जगह गोरे और भारतीय मजदूर साथ-साथ काम करते हों और दोनोंके हाथ या पैर यंत्रमें फंसकर टूट जायें तो इस कानूनके अनुसार खान-मालिक, गोरे मजदूर और उसके कुटुम्बके निर्वाहके लिए तो बँधा हुआ है, किन्तु भारतीय मजदूरकी कोई बिसात नहीं। उसके ऊपर यदि खुदा न हो तो उसका सर्वनाश हो जायेगा। इसके अलावा कोई यह भी खयाल नहीं कर सकता कि उपर्युक्त बैंकसे भारतीयोंको एक कौड़ी भी मिलेगी। वह तो केवल गोरे किसानोंके लिए है। यह सब बोथाकी बहादुरीको बलिहारी है। उनके जाति-भाइयोंने ट्रान्सवालकी भूमिको बोअर रक्तसे सींचा है, इसलिए इस समय वे पूरी सुनहरी फसल काटें तो इसपर किसीको आश्चर्य क्यों हो? हम यदि अपनेपर बोअरोंकी बहादुरीका थोड़ा-सा भी रंग चढ़ा सकें तो हमारे लिए भी धूम मच सकती है।

वीनेनका पत्र

श्री कैलनबकने जेलके सम्बन्धमें भारतीय समाजकी जो प्रशंसा की है, जान पड़ता है वह संक्रामक बन गई है। श्री बॉन वीनेन नामक एक गोरेने 'स्टार' में एक पत्र लिखा है। उसका सारांश नीचे दिया जाता है:

विवेकशील लोग भारतीयों के बारेमें लिखे गये श्री कैलनबैकके पत्रका समर्थन किये बिना नहीं रह सकते। यदि कुछ भारतीय ट्रान्सवालमें आरामसे रहें और व्यापार करें तो